कलोसियों अध्याय 03

कलोसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र – अध्याय 03

ऊपर की चीज़ें खोजते रहें

1) यदि आप लोग मसीह के साथ ही जी उठे हैं- जो ईश्वर के दाहिने विराजमान हैं- तो ऊपर की चीजें खोजते रहें।

2) आप पृथ्वी पर की नहीं, ऊपर की चीजों की चिन्ता किया करें।

3) आप तो मर चुके हैं, आपका जीवन मसीह के साथ ईश्वर में छिपा हुआ है।

4) मसीह ही आपका जीवन हैं। जब मसीह प्रकट होंगे, तब आप भी उनके साथ महिमान्वित हो कर प्रकट हो जायेंगे।

एक नया स्वभाव धारण करें

5) इसलिए आप लोग अपने शरीर में इन बातों का दमन करें, जो पृथ्वी की हैं, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, कामुकता, विषयवासना और लोभ का, जो मूर्तिपूजा के सदृश है।

6) इन बातों के कारण ईश्वर का कोप आ पड़ता है।

7) जब आप इस प्रकार का पापमय जीवन बिताते थे, तो आप भी पहले यह सब कर चुके हैं।

8) अब तो आप लोगों को क्रोध, उत्तेजना, द्वेष, परनिन्दा और अश्लील बातचीत-यह सब एकदम छोड़ देना चाहिए।

9) कभी एक दूसरे से झूठ नहीं बोलें। आप लोगों ने अपना पुराना स्वभाव और उसके कर्मों को उतार कर

10) एक नया स्वभाव धारण किया है। वह स्वभाव अपने सृष्टिकर्ता का प्रतिरूप बन कर नवीन होता रहता और सत्य के ज्ञान की ओर आगे बढ़ता है, जहाँ पहुँच कर कोई भेद नहीं रहता,

11) जहाँ न यूनानी है या यहूदी, न ख़तना है या ख़तने का अभाव, न बर्बर है, न स्कूती, न दास और न स्वतन्त्र। वहाँ केवल मसीह हैं, जो सब कुछ और सब में हैं।

12) आप लोग ईश्वर की पवित्र एवं परमप्रिय चुनी हुई प्रजा है। इसलिए आप लोगों को अनुकम्पा, सहानुभूति, विनम्रता, कोमलता और सहनशीलता धारण करनी चाहिए।

13) आप एक दूसरे को सहन करें और यदि किसी को किसी से कोई शिकायत हो तो एक दूसरे को क्षमा करें। प्रभु ने आप लोगों को क्षमा कर दिया। आप लोग भी ऐसा ही करें।

14) इसके अतिरिक्त, आपस में प्रेम-भाव बनाये रखें। वह सब कुछ एकता में बाँध कर पूर्णता तक पहुँचा देता है।

15) मसीह की शान्ति आपके हृदय में राज्य करे। इसी शान्ति के लिए आप लोग, एक शरीर के अंग बन कर, बुलाये गये हैं। आप लोग कृतज्ञ बने रहें।

16) मसीह की शिक्षा अपनी परिपूर्णता में आप लोगों में निवास करें। आप बड़ी समझदारी से एक दूसरे को शिक्षा और उपदेश दिया करें। आप कृतज्ञ हृदय से ईश्वर के आदर में भजन, स्तोत्र और आध्यात्मिक गीत गाया करें।

17) आप जो भी कहें या करें, वह सब प्रभु ईसा के नाम पर किया करें। आप लोग उन्हीं के द्वारा पिता-परमेश्वर को धन्यवाद देते रहें।

आदर्श मसीही परिवार

18) जैसा कि प्रभु-भक्तों के लिए उचित है, पत्नियाँ अपने पतियों के अधीन रहें।

19) पति अपनी पत्नियों को प्यार करें और उनके साथ कठोर व्यवहार नहीं करें।

20) बच्चे सभी बातों में अपने माता-पिता की आज्ञा मानें, क्योंकि प्रभु इस से प्रसन्न होता है ।

21) पिता अपने बच्चों को खिझाया नहीं करें। कहीं ऐसा न हो कि उनका दिल टूट जाये।

22) दासों से मेरा अनुरोध यह है कि आप सब बातों में उन लोगों की आज्ञा मानें, जो इस पृथ्वी पर आपके स्वामी हैं। आप मनुष्यों को प्रसन्न करने के उद्देश्य से दिखावे मात्र के लिए नहीं, बल्कि निष्कपट हृदय से तथा प्रभु पर श्रद्धा रख कर ऐसा करें।

23) आप लोग जो भी काम करें, मन लगा कर करें, मानों मनुष्यों के लिए नहीं, बल्कि प्रभु के लिए काम कर रहे हों;

24) क्योंकि आप जानते हैं कि प्रभु पुरस्कार के रूप में आप को विरासत प्रदान करेगा। आप लोग प्रभु के दास हैं।

25) जो अन्याय करता है, उसे अन्याय का बदला मिलेगा- किसी के साथ पक्षपात नहीं होगा।

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