प्रेरित-चरित अध्याय 01

प्रेरित-चरित – अध्याय 01

प्रेरित-चरित अध्याय 01 की व्याख्या
प्रेरित-चरित या प्रेरितों के कार्य पुस्तक जहाँ संत लूकस रचित सुसमाचार समाप्त हुआ वहीं से शुरू होता है। प्रेरित-चरित अध्याय 01 में निम्न बातों को देख सकते हैं :-

प्रस्तावना – संत लूकस रचित सुसमाचार थेओफिलुस को सम्बोधित करते हुए लिखा गया है और प्रेरित-चरित भी। पुनर्जीवित प्रभु अपने प्रेरितों के साथ चालीस दिनों तक रहे। यह जानकारी कोई भी सुसमाचार से नहीं मिलती। संत लूकस रचित सुसमाचार भी येरूसालेम से शुरू होता है और प्रेरित-चरित भी। पवित्र आत्मा के आगमन के लिए येरूसालेम में ही रहने का आदेश प्रभु अपने शिष्यों को दिते हैं। अपना मिशन जारी रखने की जिम्मेदारी भी अपने प्रेरितों को देकर प्रभु अपने पिता के पास वापस लौटते हैं।

ईसा का स्वर्गारोहण – बहुत सारे लोगों के पास दुनिया के अंत, प्रभु के दूसरे आगमन और भी स्वर्ग के बारे में बहुत जानकारी है। लेकिन प्रभु येसु कहते हैं, “पिता ने जो काल और मुहूर्त अपने निजी अधिकार से निश्चित किये हैं, तुम लोगों को उन्हें जानने का अधिकार नहीं है।” अपने शिष्यों को शिक्षा देने के बाद प्रभु स्वर्ग में आरोहित हो जाते हैं।

प्रेरितों का समुदाय – प्रेरित अन्य शिष्यों के साथ येरूसालेम में एक अटारी में रहकर प्रार्थना में समय बिताते थे।

मथियस की नियुक्ति – संत पेत्रुस और कलीसिया के बारे में बहुतों को सही जानकारी नहीं हैं। प्रभु के स्वर्गारोहण के तुरंत बाद ही हम देख सकते हैं कि संत पेत्रुस ही कलीसिया का नेतृत्व करते हैं।
यूदस के स्थान पर और किसी को चुनना ही उनका पहला कार्य था। और शिष्यों का समुदाय बरसब्बास और मथियस को आगे करता है। प्रार्थना के बाद वे मथियस को चुनते हैं।

प्रस्तावना

1 थेओफिलुस! मैंने अपनी पहली पुस्तक में उन सब बातों का वर्णन किया,

2) जिन्हें ईसा उस दिन तक करते और सिखाते रहे जिस दिन वह स्वर्ग में आरोहित कर लिये गये। उस से पहले ईसा ने अपने प्रेरितों को, जिन्हें उन्होंने स्वयं चुना था, पवित्र आत्मा द्वारा अपना कार्य सौंप दिया।

3) ईसा ने अपने दुःख भोग के बाद उन प्रेरितों को बहुत से प्रमाण दिये कि वह जीवित हैं। वह चालीस दिन तक उन्हें दिखाई देते रहे और उनके साथ ईश्वर के राज्य के विषय में बात करते रहे।

4) ईसा ने प्रेरितों के साथ भोजन करते समय उन्हें आदेश दिया कि वे येरूसालेम नहीं छोड़े, बल्कि पिता ने जो प्रतिज्ञा की, उसकी प्रतीक्षा करते रहें। उन्होंने कहा, “मैंने तुम लोगों को उस प्रतिज्ञा के विषय में बता दिया है।

5) योहन जल का बपतिस्मा देता था, परन्तु थोड़े ही दिनों बाद तुम लोगों को पवित्र आत्मा का बपतिस्मा दिया जायेगा”।

ईसा का स्वर्गारोहण

6) जब वे ईसा के साथ एकत्र थे, तो उन्होंने यह प्रश्न किया- “प्रभु! क्या आप इस समय इस्राएल का राज्य पुनः स्थापित करेंगे ?”

7) ईसा ने उत्तर दिया, “पिता ने जो काल और मुहूर्त अपने निजी अधिकार से निश्चित किये हैं, तुम लोगों को उन्हें जानने का अधिकार नहीं है।

8) किन्तु पवित्र आत्मा तुम लोगों पर उतरेगा और तुम्हें सामर्थ्य प्रदान करेगा और तुम लोग येरूसालेम, सारी यहूदिया और सामरिया में तथा पृथ्वी के अन्तिम छोर तक मेरे साक्षी होंगे।”

9) इतना कहने के बाद ईसा उनके देखते-देखते आरोहित कर लिये गये और एक बादल ने उन्हें शिष्यों की आँखों से ओझल कर दिया।

10) ईसा के चले जाते समय प्रेरित आकाश की ओर एकटक देख ही रहे थे कि उज्ज्वल वस्त्र पहने दो पुरुष उनके पास अचानक आ खड़े हुए और

11) बोले, “गलीलियो! आप लोग आकाश की ओर क्यों देखते रहते हैं? वही ईसा, जो आप लोगों के बीच से स्वर्ग में आरोहित कर दिये गये हैं, उसी तरह लौटेंगे, जिस तरह आप लोगों ने उन्हें जाते देखा है।”

प्रेरितों का समुदाय

12) प्रेरित जैतून नामक पहाड़ से येरूसालेम लौटे। यह पहाड़ येरूसालेम के निकट, विश्राम-दिवस की यात्रा की दूरी पर है।

13) वहाँ पहुँच कर वे अटारी पर चढ़े, जहाँ वे ठहरे हुए थे। वे थे-पेत्रुस तथा योहन, याकूब तथा अन्द्रेयस, फ़िलिप तथा थोमस, बरथोलोमी तथा मत्ती, अल्फाई का पुत्र याकूब तथा सिमोन, जो उत्साही कहलाता था और याकूब का पुत्र यूदस।

14) ये सब एकहृदय हो कर नारियों, ईसा की माता मरियम तथा उनके भाइयों के साथ प्रार्थना में लगे रहते थे।

मथियस की नियुक्ति

15) उन दिनों पेत्रुस भाइयों के बीच खड़े हो गये। वहाँ लगभग एक सौ बीस व्यक्ति एकत्र थे। पेत्रुस ने कहा,

16) “भाइयो! यह अनिवार्य था कि धर्मग्रन्थ की वह भविष्यवाणी पूरी हो जाये, जो पवित्र आत्मा ने दाऊद के मुख से यूदस के विषय में की थी। यूदस ईसा को गिरफ्तार करने वालों का अगुआ बन गया था।

17) वह हम लोगों में एक और धर्मसेवा में हमारा साथी था।

18) उसने अपने अधर्म की कमाई से एक खेत ख़रीदा। वह उस में मुँह के बल गिरा, उसका पेट फट गया और उसकी सारी अँतडि़याँ बाहर निकल आयीं।

19) यह बात येरूसालेम के सब निवासियों को मालूम हो गयी और वह खेत उनकी भाषा में ’हकेलदमा’ अर्थात् ’रक्त का खेत’, कहलाता है।

20) स्त्रोत-संहिता मे यह लिखा है-उसकी ज़मीन उजड़ जाये; उस पर कोई भी निवास नहीं करे और-कोई दूसरा उसका पद ग्रहण करे।

21) इसलिए उचित है कि जितने समय तक प्रभु ईसा हमारे बीच रहे,

22) अर्थात् योहन के बपतिस्मा से ले कर प्रभु के स्वर्गारोहण तक जो लोग बराबर हमारे साथ थे, उन में से एक हमारे साथ प्रभु के पुनरुत्थान का साक्षी बनें”।

23) इस पर इन्होंने दो व्यक्तियों को प्रस्तुत किया-यूसुफ को, जो बरसब्बास कहलाता था और जिसका दूसरा नाम युस्तुस था, और मथियस को।

24) तब उन्होंने इस प्रकार प्रार्थना की, “प्रभु! तू सब का हृदय जानता है। यह प्रकट कर कि तूने इन दोनों में से किस को चुना है,

25) ताकि वह धर्मसेवा तथा प्रेरितत्व में वह पद ग्रहण करे, जिस से पतित हो कर यूदस अपने स्थान गया।

26) उन्होंने चिट्ठी डाली। चिट्ठी मथियस के नाम निकली और उसकी गिनती ग्यारह प्रेरितों में हो गयी।

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प्रेरित-चरित या प्रेरितों के कार्य पुस्तक को अच्छे से समझने इसके परचिय पर बनाये गए वीडियो को देखिये।