बेथलेहेम की ओर यात्रा – Day 01

Journey to Bethlehem

बेथलेहेम की ओर यात्रा

Journey to Bethlehem

पिता ईश्वर की दृष्टि से उनके पुत्र के जन्म का अर्थ, कारण और महत्व क्या हो सकता है?
इस पिता को जानना और उन्हें अपनाना बहुत महत्वपूर्ण है।

मनन चिंतनः

  1. ईश्वर आपको अपनी संतान बना लिए हैं! क्या आप ईश्वर को अपना पिता मानते हैं और अपने आपको उनकी एक प्रिय संतान?
  2. या अभी भी एक भिखारी के समान दुनियाई चीजों की ही उनसे मांग करते हैं?
  3. आपका पिता कितना शक्तिशाली है?
  4. क्या आपने आपके प्रति पिता के असीम प्रेम को जाना है?
  5. आपका मूल्य क्या है? ईश्वर आपके बदले में अपने एकलौते प्रिय पुत्र को दे दिया है!

अभी भी क्या सोच रहे हैं?
पिता आपके लिए इंतजार कर रहे हैं?
आइये, पिता के साथ बेथलेहेम चलें!

ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने इसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस में विश्वास करता हे, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे।

सन्त योहन का सुसमाचार 3:16
उत्पत्ति ग्रन्थ 22:1-14
1) ईश्वर ने इब्राहीम की परीक्षा ली। उसने उस से कहा, ”इब्राहीम! इब्राहीम!” इब्राहीम ने उत्तर दिया, ”प्रस्तुत हूँ।”
2) ईश्वर ने कहा, ”अपने पुत्र को, अपने एकलौते को परमप्रिय इसहाक को साथ ले जा कर मोरिया देश जाओ। वहाँ, जिस पहाड़ पर मैं तुम्हें बताऊँगा, उसे बलि चढ़ा देना।”
3) इब्राहीम बड़े सबेरे उठा। उसने अपने गधे पर जीन बाँध कर दो नौकरों और अपने पुत्र इसहाक को बुला भेजा। उसने होम-बली के लिए लकड़ी तैयार कर ली और उस जगह के लिए प्रस्थान किया, जिसे ईश्वर ने बताया था।
4) तीसरे दिन, इब्राहीम ने आँखें ऊपर उठायीं और उस जगह को दूर से देखा।
5) इब्राहीम ने अपने नौकरों से कहा, ”तुम लोग गधे के साथ यहाँ ठहरो। मैं लड़के के साथ वहाँ जाऊँगा। आराधना करने के बाद हम तुम्हारे पास लौट आयेंगे।
6) इब्राहीम ने होम-बली की लकड़ी अपने पुत्र इसहाक पर लाद दी। उसने स्वयं आग और छुरा हाथ में ले लिया और दोनों साथ-साथ चल दिये।
7) इसहाक ने अपने पिता इब्राहीम से कहा, ”पिताजी!” उसने उत्तर दिया, ”बेटा! क्या बात है?” उसने उत्तर दिया, ”देखिए, आग और लकड़ी तो हमारे पास है; किन्तु होम को मेमना कहाँ है?”
8) इब्राहीम ने उत्तर दिया, ”बेटा! ईश्वर होम के मेमने का प्रबन्ध कर देगा”, और वे दोनों साथ-साथ आगे बढ़े।
9) जब वे उस जगह पहुँच गये, जिसे ईश्वर ने बताया था, तो इब्राहीम ने वहाँ एक वेदी बना ली और उस पर लकड़ी सजायी। इसके बाद उसने अपने पुत्र इसहाक को बाँधा और उसे वेदी के ऊपर रख दिया।
10) तब इब्राहीम ने अपने पुत्र को बलि चढ़ाने के लिए हाथ बढ़ा कर छुरा उठा लिया।
11) किन्तु प्रभु का दूत स्वर्ग से उसे पुकार कर बोला, ”इब्राहीम! ”इब्राहीम! उसने उत्तर दिया, ”प्रस्तुत हूँ।”
12) दूत ने कहा, ”बालक पर हाथ नहीं उठाना; उसे कोई हानि नहीं पहुँचाना। अब मैं जान गया कि तुम ईश्वर पर श्रद्धा रखते हो – तुमने मुझे अपने पुत्र, अपने एकलौते पुत्र को भी देने से इनकार नहीं किया।
13) इब्राहीम ने आँखें ऊपर उठायीं और सींगों से झाड़ी में फँसे हुए एक मेढ़े को देखा। इब्राहीम ने जाकर मेढ़े को पकड़ लिया और उसे अपने पुत्र के बदले बलि चढ़ा दिया।
14) इब्राहीम ने उस जगह का नाम ”प्रभु का प्रबन्ध” रखा; इसलिए लोग आजकल कहते हैं, ”प्रभु पर्वत पर प्रबन्ध करता है।”