2 कुरिन्थियों 6

कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का दूसरा पत्र – अध्याय 6

धर्मप्रचारक का कष्टमय जीवन

1) ईश्वर के सहयोगी होने के नाते हम आप लोगों से यह अनुरोध करते हैं कि आप को ईश्वर की जो कृपा मिली है, उसे व्यर्थ न होने दे;

2) क्योंकि वह कहता है – उपयुक्त समय में मैंने तुम्हारी ुसुनी; कल्याण के दिन मैंने तुम्हारी सहायता की। और देखिए, अभी उपयुक्त समय है, अभी कल्याण का दिन है।

3) हम हर बात में इसका ध्यान रखते हैं कि किसी को हमारी ओर उंगली उठाने का अवसर न मिले। कहीं ऐसा न हो कि हमारे सेवा-कार्य पर कलंक लगे।

4 (4-5) हम कष्ट, अभाव, संकट, कोड़ों की मार, कैद और उपद्रव में धीर बने हुए हैं और अथक परिश्रम, जागरण तथा उपवास करते हुए, हर परिस्थिति में, ईश्वर के योग्य सेवक की तरह आचरण करने का प्रयत्न करते हैं।

6) (6-7) हमारी सिफ़ारिश है- निर्दोष, जीवन, अन्तर्दृष्टि, सहनशीलता, मिलनसारी, पवित्र आत्मा के वरदान, निष्कपट प्रेम, सत्य का प्रचार, ईश्वर का सामर्थ्य। हम दाहिने और बायें हाथ में धार्मिकता के शस्त्र लिये संघर्ष करते रहते हैं।

8) सम्मान और अपमान, प्रशंसा और निन्दा- यह सब हमारे भाग्य में है। हम कपटी समझे जाते हैं, किन्तु हम सत्य बोलते हैं।

9) हम नगण्य हैं, किन्तु सब लोग हमें मानते हैं। हम मरने-मरने को हैं, किन्तु हम जीवित हैं। हम मार खाते हैं, किन्तु हमारा वध नहीं होता।

10) हम दुःखी हैं, फिर भी आप हर समय आनन्दित हैं। हम दरिद्र हैं, फिर भी हम बहुतों को सम्पन्न बनाते हैं। हमारे पास कुछ नहीं है; फिर सब कुछ हमारा है।

कुरिन्थी पवित्रता की परिपूर्णता तक पहुँचने का प्रयत्न करें

11) कुरिन्थियो! हमने आप लोगों से खुल कर बातें की हैं। हमने आपके सामने अपना हृदय खोल कर रख दिया है।

12) आप लोगों के प्रति हम में कोई संकीर्णता नहीं है, बल्कि आपके हृदयों में संकीर्णता है।

13) इसके बदले आप भी उदार बनें- यह मैं पिता की तरह अपने बच्चों से कह रहा हूँ।

14) आप लोग अविश्वासियों के साथ बेमेल जूए में मत जुतें। धार्मिकता का अधर्म से क्या सम्बन्ध? ज्योति का अन्धकार से क्या संबंध?

15) मसीह की बेलियार से क्या संगति? विश्वासी की अविश्वासी से क्या सहभागिता?

16) ईश्वर के मन्दिर का देवमूर्तियों से क्या समझौता? क्योंकि हम जीवन्त ईश्वर के मन्दिर हैं, जैसा कि ईश्वर ने कहा है- मैं उनके बीच निवास करूँगा और उनके साथ चलूँगा।

17) मैं उनका ईश्वर होऊँगा और वे मेरी प्रजा होंगे। इसलिए दूसरों के बीच से निकल कर अलग हो जाओ और किसी अपवित्र वस्तु का स्पर्श मत करो- यह प्रभु का कहना है।

18) तब मैं तुम्हें अपनाऊँगा; मैं तुम्हारे लिए पिता-जैसा होऊँगा और तुम मेरे लिए पुत्र-पुत्रियों-जैसे होगे-यह सर्वशक्तिमान प्रभु का कहना है।

The Content is used with permission from www.jayesu.com