New Testament

पवित्र बाइबिल (बाइबल) ईश्वर का लिखित वचन है | यह 73 पुस्तकों का एक पुस्तक है | इसे दो भागों में बांटा गया है – पुराना विधान (नियम) और नया विधान (नियम) |
पुराना विधान (नियम) में 46 पुस्तकें (काथलिक) हैं और नये विधान (नियम) में 27 पुस्तकें | नये विधान (नियम) का परिचय बहुत जरुरी है ताकि इन पुस्तों को में लिखी गयी बातों को अच्छा से समझ सकें |
नये विधान (नियम) में हम विशेष रूप से स्वयं प्रभु येसु के जीवन, शिक्षा, कार्य, दुखभोग, मृत्यु और पुनरुत्थान के साथ साथ प्रारंभिक कलीसिया की बातों को हम पढ़ सकते हैं |
यूनानी भाषा में लिखे गए इन 27 पुस्तकों को पवित्र आत्मा की प्रेरणा से लेखकों ने लिखा है | इसलिए पवित्र बाइबिल को “मानव शब्दों में ईश्वर का वचन” कहा जाता है |
इन्हें लिखने में लगभग 50 से 60 साल लगे थे और इनकी स्वीकृति मिलने में पांच सदी तक लग गयीं |
प्रभु येसु का जीवन और उनकी शिक्षा को मौखिक रूप से ही प्रभु येसु के शिष्य और शिष्यों के शिष्य भी देने लगे थे | इन मौखिक रूप में दी गयीं शिक्षा को लिखने लगे और उसके बाद उनका अनुसन्धान करने लगे | कुछ समय के बाद इनका editing किया गया | इनका प्रयोग अलग अलग जगह की कालीसियावों के द्वारा पवित्र मिस्सा बलिदान में किये जाने लगा |
इन 27 पुस्तकों के अतरिक्त बहुत सारे पुस्तकें जगह जगह पर प्रयोग कर रहे थे | इसलिए यह निर्धारित करना जरुरी पड़ा कि इनमें से कितने पुस्तक “पवित्र आत्मा की प्रेरणा से लिखे गए हैं” जिसको अंग्रेजी में Canonicity कहा जाता है |

स्वीकृति (Canonicity) के लिए 4 मापदंड
1. प्रेरितिक मूल – Apostolic Origin
2. सार्वभौमिक स्वीकृति – Universal Acceptance
3. पूजनपद्धती में उपयोग – Liturgical Use
4. प्रकटीकरण के साथ सम्बन्ध – Consistent Message