पवित्र यूखरिस्तीय चमत्कार

Eucharistic Miracles in Hindi

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क्या आप विश्वास करते हैं कि पवित्र यूखरिस्त स्वयं प्रभु येसु ही हैं? आप क्या कहेंगे यदि मैं आप से कहूँ – 13 वीं सदी में तीन दिन का भूखा एक गधा ने खाने के बदले पवित्र यूखरिस्त के सामने नतमस्तक हो गया !

चमत्कारी संत, संत अंतोनी (1195-1231) के जीवन काल में घटी इस महान घटना को जानना जरुरी है |

प्रभु येसु के देहधारण (शरीरधारण) पर बहुत सारे शिक्षित लोग विश्वास नहीं कर पाए | उनमें बहुत सारे फरीसी (जो मूसा के दिए गए नियमों का पूरा पूरा पालन करने वाले) और बहुत सारे शास्त्री (जो ईश-वचन के जानकार थे) भी शामिल थे |

आज भी, उन्हीं के समान कलीसिया के (काथलिक और गैर-काथलिक) बहुत सारे जानकार लोग उन्हीं प्रभु की सच्ची और वास्तविक उपस्तिथि पर विश्वास नहीं कर पाते हैं |

इसी प्रकार के लोग जब पुरोहित संत अंतोनी (1195-1231) के पास जाकर उन्हें चुनौती दिए तो महान संत उनके साथ एक शर्त और समझौता किये | उसके अनुसार तीन दिन तक भूखा रखा गया एक गधा भोजन के बदले पवित्र यूखरिस्त के सामने आ कर प्रभु की उपस्तिथि को पहचानना था |

आगे क्या हुआ ? जानने पूरा पॉडकास्ट सुनिए & पूरा वीडियो देखिये |

गधा का दिमाग हम से जरूर कम है | लेकिन उसने अपने प्रभु को पहचान लिया | क्या आप और मैं प्रभु को पहचान पाते हैं? क्यों नहीं?

स्वयं प्रभु येसु ने इसके बारे में क्या कहा है? (सन्त योहन का सुसमाचार 6:34-58सन्त योहन का सुसमाचार 6:34-58)

46) "यह न समझो कि किसी ने पिता को देखा है; जो ईश्वर की ओर से आया है, उसी ने पिता को देखा है
47) मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - जो विश्वास करता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है।
48) जीवन की रोटी मैं हूँ।
49) तुम्हारे पूर्वजों ने मरुभूमि में मन्ना खाया, फिर भी वे मर गये।
50) मैं जिस रोटी के विषय में कहता हूँ, वह स्वर्ग से उतरती है और जो उसे खाता है, वह नहीं मरता।
51) स्वर्ग से उतरी हुई वह जीवन्त रोटी मैं हूँ। यदि कोई वह रोटी खायेगा, तो वह सदा जीवित रहेगा। जो रोटी में दूँगा, वह संसार के लिए अर्पित मेरा मांस है।"
52) यहूदी आपस में यह कहते हुए वाद विवाद कर रहे थे, "यह हमें खाने के लिए अपना मांस कैसे दे सकता है?"
53) इस लिए ईसा ने उन से कहा, "मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - यदि तुम मानव पुत्र का मांस नहीं खाओगे और उसका रक्त नहीं पियोगे, तो तुम्हें जीवन प्राप्त नहीं होगा।
54) जो मेरा मांस खाता और मेरा रक्त पीता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है और मैं उसे अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूँगा;
55) क्योंकि मेरा मांस सच्चा भोजन है और मेरा रक्त सच्चा पेय।
56) जो मेरा मांस खाता और मेरा रक्त पीता है, वह मुझ में निवास करता है और मैं उस में।
57) जिस तरह जीवन्त पिता ने मुझे भेजा है और मुझे पिता से जीवन मिलता है, उसी तरह जो मुझे खाता है, उसको मुझ से जीवन मिलेगा। यही वह रोटी है, जो स्वर्ग से उतरी है।
58) यह उस रोटी के सदृश नहीं है, जिसे तुम्हारे पूर्वजों ने खायी थी। वे तो मर गये, किन्तु जो यह रोटी खायेगा, वह अनन्त काल तक जीवित रहेगा।"

59) ईसा ने कफरनाहूम के सभागृह में शिक्षा देते समय यह सब कहा।
60) उनके बहुत-से शिष्यों ने सुना और कहा, "यह तो कठोर शिक्षा है। इसे कौन मान सकता है?"
61) यह जान कर कि मेरे शिष्य इस पर भुनभुना रहे हैं, ईसा ने उन से कहा, "क्या तुम इसी से विचलित हो रहे हो?
62) जब तुम मानव पूत्र को वहाँ आरोहण करते देखोगे, जहाँ वह पहले था, तो क्या कहोगे?
63) आत्मा ही जीवन प्रदान करता है, मांस से कुछ लाभ नहीं होता। मैंने तुम्हे जो शिक्षा दी है, वह आत्मा और जीवन है।
64) फिर भी तुम लोगों में से अनेक विश्वास नहीं करते।" ईसा तो प्रारम्भ से ही यह जानते थे कि कौन विश्वास नहीं करते और कौन मेरे साथ विश्वासघात करेगा।
65) उन्होंने कहा, "इसलिए मैंने तुम लोगों से यह कहा कि कोई मेरे पास तब तक नहीं आ सकता, जब तक उसे पिता से यह बरदान न मिला हो"।
66) इसके बाद बहुत-से शिष्य अलग हो गये और उन्होंने उनका साथ छोड़ दिया।
67) इसलिए ईसा ने बारहों से कहा, "कया तुम लोग भी चले जाना चाहते हो?"