स्तोत्र ग्रन्थ – 112

Psalm 112 || भजन संहिता 112

1) अल्लेलूया! धन्य है वह मनुष्य, जो प्रभु पर श्रद्धा रखता और उसकी आज्ञाओं को हृदय से चाहता है!

2) उसका वंश पृथ्वी पर फलेगा-फूलेगा; धर्मियों की सन्तति को आशीर्वाद प्राप्त होगा।

3) उसका घर भरा-पूरा होगा; उसकी न्यायप्रियता सदा बनी रहती है।

4) वह धर्मियों के लिए अन्धकार का प्रकाश हैः; वह दयालु, करूणामय और न्यायप्रिय है।

5) वह तरस खा कर उधार देता और ईमानदारी से अपना कारबार करता है।

6) वह सन्मार्ग से कभी नहीं भटकेगा। उसकी स्मृति सदा बनी रहेगी।

7) वह विपत्ति के समाचार से नहीं डरेगा, उसका मन सुदृढ़ है। वह ईश्वर का भरोसा करता है।

8) वह न तो घबराता और न डरता है; वह अपने शत्रुओं का डट कर सामना करता है।

9) वह उदारतापूर्वक दरिद्रों को दान देता है। उसकी न्यायप्रियता सदा बनी रहती है। वह सम्मानपूर्वक अपना सिर ऊँचा करता है।

10) दुष्ट यह देख कर जलता है, वह निराश हो कर दाँत पीसता है। दुष्टों की अभिलाषाएँ निष्फल होंगी।

The Content is used with permission from www.jayesu.com

भजन संहिता (स्तोत्र ग्रन्थ) को अच्छे से समझने इसके परचिय पर बनाये गए वीडियो को देखिये।