योहन अध्याय 16

सन्त योहन का सुसमाचार- अध्याय 16

योहन अध्याय 16 की व्याख्या
संत योहन रचित सुसमाचार अध्याय 16 में प्रभु येसु पवित्र आत्मा और उनके पुनरुत्थान के बाद अपने शिष्यों से मिलने के बारे में शिक्षा देते हैं।

पवित्र आत्मा का आगमन – प्रभु येसु पवित्र आत्मा के बारे में यहाँ हमें शिक्षा देते हैं।

इसको ध्यान से पढ़ने से पवित्र आत्मा और अति पवित्र त्रित्व के बारे में निम्न बातें देखने को मिलती हैं :-

1. पवित्र आत्मा एक व्यक्ति हैं।
2. पवित्र आत्मा पवित्र त्रित्व तीसरे व्यक्ति हैं।
3. पवित्र त्रित्व के तीनों व्यक्ति इतने घनिष्ट रूप से एक दूसरे जुड़े हैं कि उनको अलग-अलग व्यक्तियों के रूप में पहचानना बहुत मुश्किल है।
4. पुत्र ईश्वर और पवित्र आत्मा ईश्वर एक ही मिशन में भेजे गए हैं।
5. पवित्र आत्मा प्रभु येसु के मिशन को जारी रखते हैं।
6. पवित्र आत्मा पवित्र कलीसिया में रहकर प्रभु येसु और उनकी शिक्षा को कलीसिया के सदस्यों पर प्रकट करते और उनकी मदद करते हैं।

तुम मुझे फिर देखोगे – तीन दिनों के बाद उनके शिष्य उन्हें फिर देखेंगे और उनका आनंद पूर्ण हो जायेगा।

मैंने संसार पर विजय पायी है – प्रभु येसु अपने और अपने पिता के बीच के सम्बन्ध के बारे में अपने शिष्यों पर प्रकट करते हैं। उन्हें अधिकार देते और कहते हैं कि वे सीधे, बिना प्रभु की मध्यस्थता के बिना ही पिता से प्रार्थना कर सकते हैं। अब उन्हें डरने की कोई जरुरत नहीं है, क्योंकि प्रभु कहते हैं, “मैंने संसार पर विजय पायी है”।

1) मैंने तुम लोगो से यह इसीलिये कहा है कि तुम विचलित नहीं हो।

2) वे तुम्हें सभागृहों से निकाल देंगे। इतना ही नहीं, वह समय आ रहा है, जब तुम्हारी हत्या करने वाला यह समझेगा कि वह ईश्वर की सेवा कर रहा है।

3) वे यह सब इसीलिये करेंगे कि उन्होंने न तो पिता को पहचाना है और न मुझ को।

4) मैंने तुम लोगों से यह इसलिये कहा है कि समय आने पर तुम्हें यह स्मरण रहे कि मैंने तुम्हें पहले ही सचेत किया था।

पवित्र आत्मा का आगमन

मैंने प्रारंभ से ही तुम लोगों से यह नहीं कहा, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ था।

5) अब मैं उसके पास जा रहा हूँ, जिसने मुझे भेजा और तुम लोगो में कोई मुझ से यह नहीं पूछता कि आप कहाँ जा रहे हैं।

6) मैंने तुम से यह कहा है, इसलिये तुम्हारे हृदय शोक से भर गये हैं।

7) फिर भी मैं तुम लोगों से सच कहता हूँ तुम्हारा कल्याण इस में है कि मैं चला जाऊँ। यदि मैं नहीं जाऊँगा, तो सहायक तुम्हारे पास नहीं आयेगा। यदि मैं जाऊँगा, तो मैं उसे तुम्हारे पास भेजूँगा।

8) जब वह आयेगा, तो पाप, धार्मिकता और दंण्डाज्ञा के विषय में संसार का भ्रम प्रमाणित कर देगा-

9) पाप के विषय में, क्योंकि वे मुझ में विश्वास नहीं करते

10) घार्मिकता के विषय में, क्योंकि मैं पिता के पास जा रहा हूँ और तुम मुझे और नहीं देखोगे;

11) दण्डाज्ञा के विषय में, क्योंकि इस संसार का नायक दोषी ठहराया जा चुका है।

12) मुझे तुम लोगों से और बहुत कुछ कहना है परन्तु अभी तुम वह नहीं सह सकते।

13) जब वह सत्य का आत्मा आयेगा, तो वह तुम्हें पूर्ण सत्य तक ले जायेगा; क्योंकि वह अपनी ओर से नहीं कहेगा, बल्कि वह जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा और तुम्हें आने वाली बातों के विषय में बतायेगा।

14) वह मुझे महिमान्वित करेगा, क्योंकि उसे मेरी ओर से जो मिला है, वह तुम्हें वही बतायेगा।

15) जो कुछ पिता का है, वह मेरा है। इसलिये मैंने कहा कि उसे मेरी ओर से जो मिला है, वह तुम्हें वही बतायेगा।

तुम मुझे फिर देखोगे

16 थोडे ही समय बाद तुम लोग मुझे नहीं देखोगे और फिर थोडे ही समय बाद मुझे देखोगे।

17) इस उनके कुछ शिष्यों ने आपस में यह कहा, “वह हम से यह क्या कहते हैं- थोडे ही समय बाद तुम मुझे नहीं देखोग और फिर थोडे ही समय बाद तुम मुझे देखोगे, और क्योंकि मैं पिता के पास जा रहा हूँ?”

18) इसलिये वे कहते थे, “वह जो ’थोडा समय’ कहते हैं इस का अर्थ क्या है? हम उनकी बात नहीं समझ पा रहे हैं।”

19) ईसा ने यह जानकर कि वे मुझ से प्रश्न पूछना चाहते हैं, उन से कहा, “तुम आपस में मेरे इस कथन के अर्थ पर विचार विमर्श कर रहे हो कि ’थोडे ही समय बाद तुम मुझे नहीं देखोगे और फिर थोड़े ही समय बाद मुझे देखोगे।

20) मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ “तुम रोओगे और विलाप करोगे, परन्तु संसार आनंद मनायेगा। तुम शोक करोगे किन्तु तुम्हारा शोक आनन्द बन जायेगा।

21) प्रसव निकट आने पर स्त्री को दुख होता है, क्योंकि उसका समय आ गया है; किन्तु बालक को जन्म देने के बाद वह अपनी वेदना भूल जाती है, क्योंकि उसे आनन्द होता है कि संसार में एक मनुष्य का जन्म हुआ है।

22) इसी तरह तुम लोग अभी दुखी हो, किन्तु मैं तुम्हे फिर देखूँगा और तुम आनन्द मनाओगे। तुम से तुम्हारा आनन्द कोई नहीं छीन सकेगा।

23) उस दिन तुम मुझ से कोई प्रश्न नहीं करोगे। मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ – तुम पिता से जो कुछ माँगोगे वह तुम्हें मेरे नाम पर वही प्रदान करेगा।

24) अब तक तुमने मेरा नाम ले कर कुछ भी नहीं माँगा है। माँगो और तुम्हें मिल जायेगा, जिससे तुम्हारा आनन्द परिपूर्ण हो।

मैंने संसार पर विजय पायी है

25) मैंने तुम लोगो से यह सब दृष्टांतो में कहा है। वह समय आ रहा है, जब मैं फिर तुम लेागों से दृष्टांतो में कुछ नहीं कहूँगा, बल्कि तुम्हें स्पष्ट शब्दों में पिता के विषय में बताऊँगा।

26) तुम उस दिन मेरा नाम लेकर प्रार्थना करोग। मैं नहीं कहता कि तुम्हारे लिये पिता से प्रार्थना करूँगा।

27) पिता तो स्वयं तुम्हें प्यार करता है, क्योंकि तुम मुझे प्यार करते और यह विश्वास करते हो कि मैं ईश्वर के यहाँ से आया हूँ।

28) मैं पिता के यहाँ से संसार में आया हूँ। अब मैं संसार को छोड कर पिता के पास जा रहा हूँ।”

29) उनके शिष्यों ने उन से कहा, “देखिये, अब आप दृष्टांतो में नहीं, बल्कि स्पष्ट शब्दों में बोल रहे हैं।

30) अब हम समझ गये है कि आप सब कुछ जानते हैं- प्रश्नों की कोई ज़रूरत नहीं रह गयी है। इसलिये हम विश्वास करते हैं कि आप ईश्वर के यहाँ से आये हैं।

31) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या तुम अब विश्वास करते हो?

32) देखो! वह घडी आ रही है, आ ही गयी है। जब तुम सब तितर-बितर हो जाओगे और अपना-अपना रास्ता ले कर मुझे अकेला छोड दोगे। फिर भी मैं अकेला नहीं हूँ, क्योंकि पिता मेरे साथ है।

33) मैंने तुम लोगों से यह सब इसलिये कहा है कि तुम मुझ में शांति प्राप्त कर सको। संसार में तुम्हें क्लेश सहना पडेगा। परन्तु ढारस रखो- मैंने संसार पर विजय पायी है।

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संत योहन रचित सुसमाचार को अच्छे से समझने इसके परचिय पर बनाये गए वीडियो को देखिये।