गलातियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र – अध्याय 3
विश्वास द्वारा ही आत्मा का वरदान
1) नासमझ गलातियों! किसने आप लोगों पर जादू डाला है? आप लोगों को तो सुस्पष्ट रूप से यह दिखलाया गया कि ईसा मसीह क्रूस पर आरोपित किये गये थे।
2) मैं आप लोगों से इतना ही जानना चाहता हूँ – आप को संहिता के कर्मकाण्ड के कारण आत्मा का वरदान मिला या सुसमाचार के सन्देश पर विश्वास करने के कारण?
3) क्या आप लोग इतने नासमझ हैं कि आपने जो कार्य आत्मा द्वारा प्रारम्भ किया, उसे अब शरीर द्वारा पूर्ण करना चाहते हैं?
4) क्या आप लोगों को व्यर्थ ही इतने वरदान प्राप्त हुए? मुझे ऐसा विश्वास नहीं है।
5) जब ईश्वर आप लोगों को आत्मा का वरदान देता है और आपके बीच चमत्कार दिखाता है, तो क्या वह संहिता के कर्मकाण्ड के कारण ऐसा करता है या इसलिए कि आप सुसमाचार के सन्देश पर विश्वास करते है?
इब्राहीम से की गयी प्रतिज्ञा और विश्वास
6) इब्राहीम ने ईश्वर में विश्वास किया और इसी से वह धार्मिक माने गये,
7) इसलिए आप लोग यह निश्चित रूप से जान लें कि जो लोग विश्वास करते हैं, वे ही इब्राहीम की सन्तान हैं।
8) धर्मग्रन्थ पहले से यह जानता था कि ईश्वर विश्वास द्वारा गैर-यहूदियों को पापमुक्त करेगा, इसलिए उसने पहले से इब्राहीम को यह सुसमाचार सुनाया कि तुम्हारे द्वारा पृथ्वी भर के राष्ट्र आशीर्वाद प्राप्त करेंगे।
9) इसलिए जो विश्वास पर निर्भर रहते हैं, विश्वास करने वाले इब्राहीम के साथ ही आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
10) परन्तु जो संहिता के कर्मकाण्ड पर निर्भर रहते है, वे शाप के अधीन हैं; क्योंकि लिखा है- जो व्यक्ति संहिता-ग्रन्थ में लिखी हुई सभी बातों का पालन नहीं करता रहता है, वह शापित है।
11) यह तो स्पष्ट है कि कोई संहिता के कारण ईश्वर की दृष्टि में धार्मिक नहीं होता; क्योंकि लिखा है- धार्मिक मनुष्य अपने विश्वास के द्वारा जीवन प्राप्त करेगा।
12) और संहिता का विश्वास से कोई सम्बन्ध नहीं है; क्योंकि उस में लिखा है-जो इन बातों का पालन करेगा, उसे इन्हीं के द्वारा जीवन प्राप्त होगा।
13) मसीह हमारे लिए शापित बने और इस तरह उन्होंने हम को संहिता के अभिशाप से मुक्त किया; क्योंकि लिखा है- जो काठ पर लटकाया जाता है, वह शापित है।
14) यह इसलिए हुआ कि ईसा मसीह के द्वारा इब्राहीम का आशीर्वाद ग़ैर-यहूदियों को भी प्राप्त हो और हमें विश्वास द्वारा वह आत्मा मिले, जिसकी प्रतिज्ञा की गयी थी।
इब्राहीम के वंशज कौन
15) भाइयो! मैं आप लोगों को साधारण जीवन का उदाहरण दे रहा हूँ। कोई व्यक्ति किसी मनुष्य का प्रामाणिक वसीयतनामा न तो रद्द कर सकता और न उस में कुछ जोड़ सकता है।
16) अब प्रतिज्ञाएँ इब्राहीम और उनके वंशज को दी गयी हैं। धर्मग्रन्थ नहीं कहता- उनके वंशजों को, मानो बहुतों को, बल्कि उनके वश्ंाज को, मानो एक को ही, और वह वंशज मसीह हैं।
17) मेरे कहने का अभिप्राय यह है- जो वसीयतनामा ईश्वर द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है, उसे चार सौ वर्ष बाद की संहिता न तो रद्द कर सकती और न उसकी प्रतिज्ञाएँ उठा सकती हैं।
18) यदि संहिता के माध्यम से वसीयत प्राप्त होती है, तो प्रतिज्ञा से उसका कोई सम्बन्ध नहीं; किन्तु प्रतिज्ञा द्वारा ही ईश्वर ने उसे इब्राहीम को दिया।
19) तब संहिता का प्रयोजन क्या है? जिस वंशज को प्रतिज्ञा दी गयी थी, उसके आने के समय तक संहिता अपराधों के कारण जोड़ दी गयी थी। वह स्वर्गदूतों द्वारा एक मध्यस्थ के माध्यम से घोषित की गयी है।
20) वह मध्यस्थ एक की ओर से नहीं, अनेकों की ओर से मध्यस्थता करता थाः किन्तु ईश्वर एक है।
21) तो क्या संहिता और प्रतिज्ञाओं में विरोध है? कभी नहीं! यदि ऐसी संहिता की घोषणा हुई होती, जो जीवन प्रदान करने में समर्थ थी, तो संहिता के पालन द्वारा ही पापमुक्ति मिलती।
22) परन्तु धर्मग्रन्थ ने सब कुछ पाप के अधीन कर दिया है, जिससे ईसा मसीह में विश्वास के द्वारा विश्वास करने वालों के लिए प्रतिज्ञा पूरी की जाये।
23) विश्वास के आगमन से पहले हम को उसके प्रकट होने के समय तक संहिता के निरीक्षण में बन्दी बना दिया गया था।
24) इस प्रकार जब तक मसीह नहीं आये और हम विश्वास के द्वारा धार्मिक नहीं बने, तब तक संहिता हमारी निरीक्षक रही।
25) किन्तु अब विश्वास आया है और हम निरीक्षक के अधीन नहीं रहे।
26) क्योंकि आप लोग सब-के-सब ईसा मसीह में विश्वास करने के कारण ईश्वर की सन्तति हैं;
27) क्योंकि जितने लोगों ने मसीह का बपतिस्मा ग्रहण किया, उन्होंने मसीह को धारण किया है।
28) अब न तो कोई यहूदी और न यूनानी, न तो कोई दास है और न स्वतन्त्र, न तो कोई पुरुष है और न स्त्री-आप सब ईसा मसीह में एक हो गये हैं।
29) यदि आप लोग मसीह के है, तो इब्राहीम की सन्तान है और प्रतिज्ञा के अनुसार उनके उत्तराधिकारी।
The Content is used with permission from www.jayesu.com