Fr. C. George Mary Claret

Fr. C. George Mary Claret is a young vibrant missionary Catholic Priest, currently pastoring the community of a mission in the Archdiocese of Raipur, India. He spends his time helping people experience God’s love and personalize the Mysteries. He is also active in the online ministry via Podcast, YouTube, and Facebook.

अय्यूब (योब) का ग्रन्थ 29

The Book of Job 1) अय्यूब ने अपना काव्य आगे बढ़ाते हुए कहा: 2) कौन मुझे पहले की सुख-शांति लौटायेगा? वे दिन, जब ईश्वर मुझे सुरक्षित रखता था, 3) जब उसका दीपक मेरे ऊपर चमकता था, जब मैं रात के समय ईश्वर की ज्योति में चलता था; 4) जब मैं समृद्धि में जीवन बिताता था, …

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अय्यूब (योब) का ग्रन्थ 30

The Book of Job 1) जो उम्र में मुझ से छोटे है, जिनके पिताओं को मैं अपनी भेड़ें चराने वाले कुत्तों की श्रेणी में भी रखना नहीं चाहता था, वे अब मेरा उपहास करते हैं! 2) मुझे उनके हार्थों के काम से क्या लाभ होता? उनकी शक्ति एकदम समाप्त हो गयी थी। 3) वे अभाव …

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अय्यूब (योब) का ग्रन्थ 31

The Book of Job 1) मैंने अपनी आँखों के साथ समझौता कर लिया कि मैं किसी कुमारी पर दृष्टि नहीं डालूँगा। 2) स्वर्ग में ईश्वर मनुष्य का कौन-सा भाग्य निर्धारित करता है? सर्वशक्तिमान् आकाश की ऊँचाईयों से उसे कैसी विरासत देता है? 3) क्या वह विधर्मी का विनाश और कुकर्मी की विपत्ति नहीं है? 4) …

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अय्यूब (योब) का ग्रन्थ 32

The Book of Job 1) इन तीन व्यक्तियों ने अय्यूब को उत्तर देना बंद कर दिया, क्योंकि वह अपने आप को धार्मिक समझता था। 2) तब रामकुल के बूजवंश बारकएल का पुत्र एलीहू क्रुद्ध हो उठा। वह अय्यूब पर इसलिए क्रुद्ध हुआ कि अय्यूब ने ईश्वर के सामने अपने को दोषमुक्त प्रमाणित करना चाहा। 3) …

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अय्यूब (योब) का ग्रन्थ 33

The Book of Job 1) अय्यूब! अब मेरी बात सुनो। जो कहता हूँ, उस पर ध्यान दो। 2) देखों, मैं अपना मुँह खोलने वाला हूँ मेरी जीभ बोलने को बेचैन है। 3) मैं निष्टकट हृदय से बोलूँगा, मेरे होंठ सत्य ही प्रकट करेंगे। 4) ईश्वर के आत्मा ने मुझे गढ़ा है, सर्वशक्तिमान मुझ में प्राणवायु …

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अय्यूब (योब) का ग्रन्थ 34

The Book of Job 1) तब एलीहू ने यह कहा: 2) बुद्धिमान् लोगों – मेरा भाषण सुनो। ज्ञानियो! मेरी सब बातों पर ध्यान दो; 3) क्योंकि जिस प्रकार जीभ स्वाद लेती है, उसी तरह कान शब्दों को परखता है। 4) हम स्वयं देखें कि सही बात क्या है, हम मिल कर जान ले कि उचित …

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अय्यूब (योब) का ग्रन्थ 35

The Book of Job 1) एलीहू ने फिर कहा: 2) क्या तुम अपना यह कहना सही मानते हो: “मैं ईश्वर की अपेक्षा अधिक न्यायी हूँ”? 3) तुमने कहा, “इसका क्या महत्व है? मुझे अपनी धार्मिकता से क्या लाभ होता है?” 4) मैं तुम्हारे मित्रों के साथ तुम को अपने भाषण द्वारा निरूत्तर कर दूँगा। 5) …

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अय्यूब (योब) का ग्रन्थ 36

The Book of Job 1) एलीहू ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा: 2 थोड़ी देर और धैर्य से मेरी बात सुनो। मुझे ईश्वर के पक्ष में तुम को कुछ और कहना है। 3) अपने सृष्टिकर्ता का व्यवहार न्यायसंगत सिद्ध करने मैं दूर-दूर से ज्ञान संचित करूँगा। 4) मेरी बातों में निश्चत ही असत्य नहीं …

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अय्यूब (योब) का ग्रन्थ 37

The Book of Job 1) यह देख कर मेरा दिल धड़कता और अपने स्थान से उछल पडता है। 2) सुनो, उसकी वाणी के गर्जन को, उसके मुख से निकलने वाली गडगडाहट को, 3) जो समस्त आकाश के नीचे गूँजती है। उसकी बिजली पृथ्वी के सीमांतों तक फैल जाती है। 4) बिजली के बाद उसकी वाणी …

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अय्यूब (योब) का ग्रन्थ 38

The Book of Job 1) प्रभु ने आँधी में से अय्यूब को इस प्रकार उत्तर दिया: 2) निरर्थक बातों द्वारा कौन मेरी योजना पर आक्षेप करता है? 3) शूरवीर की तरह कमर कस कर प्रस्तुत हो जाओ। मैं प्रश्न करूँगा और तुम मुझे सिखलाओ। 4) जब मैंने पृथ्वी की नींव डाली, तो तुम कहाँ थे? …

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संत मोनिका आदर्श माँ

St. Monica Patron of Mothers Hindi संत मोनिका आदर्श माँ हैं। उनका विवाह एक गैर-ख्रीस्तीय परिवार में हुआ था। संत मोनिका अपने ख्रीस्तीय साक्षीय जीवन, प्रेम, और प्रार्थना द्वारा पहले अपनी सास और फिर अपने पति को ख्रीस्तीय विश्वास में लाई। अंत में अपने पुत्र अगस्टीन के लिए ईश्वर से 18 वर्षों के त्याग, तपस्या, …

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स्तोत्र ग्रन्थ – 01

Psalm 1 1) धन्य है वह मनुष्य, जो दुष्टों की सलाह नहीं मानता, पापियों के मार्ग पर नहीं चलता और अधर्मियों के साथ नहीं बैठता, 2) जो प्रभु का नियम-हृदय से चाहता और दिन-रात उसका मनन करता है! 3) वह उस वृक्ष के सदृश है, जो जलस्रोत के पास लगाया गया, जो समय पर फल …

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स्तोत्र ग्रन्थ – 2

Psalm 2 || भजन संहिता 2 1) राष्ट्रों में खलबली क्यों मची हुई है, देश-देश के लोग व्यर्थ की बातें क्यों करते हैं? 2) पृथ्वी के राजा विद्रोह करते हैं। वे प्रभु तथा उसके मसीह के विरुद्ध षड्यन्त्र रचते हैं 3) और कहते हैं: हम उनकी बेड़ियाँ तोड़ डालें हम उनका जुआ उतार कर फेंक …

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स्तोत्र ग्रन्थ – 3

Psalm 3 || भजन संहिता 3 2 (1-2) प्रभु! कितने ही मेरे शत्रु! कितने है, जो मुझ से विद्रोह करते हैं! 3) कितने हैं, जो मेरे विषय में यह कहते हैं: उसका ईश्वर उसकी सहायता नहीं करता। 4) प्रभु! तू ही मेरी ढाल और मेरा गौरव है। तू ही मेरा सिर ऊँचा करता है। 5) …

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स्तोत्र ग्रन्थ – 4

Psalm 4 || भजन संहिता 4 2 (1-2) ईश्वर! मेरे रक्षक! मेरी पुकार का उत्तर दे। तूने मुझे सदा संकट से उबारा है। मुझ पर दया कर और मेरी प्रार्थना सुन। 3) मनुष्यों! कब तक अन्धे बने रहोगे? कब तक मोह में पड़ कर असत्य की खोज करते रहोगे? 4) समझ लो-प्रभु अपने भक्त के …

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स्तोत्र ग्रन्थ – 5

Psalm 5 || भजन संहिता 5 2 (1-2) प्रभु! मेरी बात सुनने की कृपा कर। मेरे उच्छ्वासों पर ध्यान दे। 3) मेरी दुहाई तेरे पास पहुँचे, प्रभु! मैं तुझ से प्रार्थना करता हूँ, मेरे राजा, मेरे ईश्वर! 4) प्रभु! तू प्रातःकाल मेरी पुकार सुनता है। मैं प्रातः अपना चढ़ावा सजाता हूँ और प्रतीक्षा करता रहता …

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स्तोत्र ग्रन्थ – 6

Psalm 6 || भजन संहिता 6 2 (1-2) प्रभु! क्रुद्ध हुए बिना मुझे दण्ड दे, कोप किये बिना मेरा सुधार कर। 3) प्रभु! दया कर, मैं कुम्हलाता जा रहा हूँ प्रभु! मुझे स्वस्थ कर। मेरी शक्ति शेष हो रही है। 4) मेरी आत्मा बहुत घबरा रही है। लेकिन तू प्रभु! कब तक……? 5) प्रभु! लौट …

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स्तोत्र ग्रन्थ – 7

Psalm 7 || भजन संहिता 7 2 (1-2) प्रभु! मेरे ईश्वर! मैं तेरी शरण आया हूँ। पीछा करने वालों से मेरी रक्षा कर, मेरा उद्धार कर। 3) कहीं ऐसा न हो कि वे सिंह की तरह मुझे फाड़ डाले, मुझे घसीट ले जायें और मुझे कोई नहीं बचाये। 4) प्रभु! मेरे ईश्वर! यदि मैंने यह …

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स्तोत्र ग्रन्थ – 8

Psalm 8 || भजन संहिता 8 2 (1-2) प्रभु! हमारे ईश्वर! तेरा नाम समस्त पृथ्वी पर कितना महान् है! तेरी महिमा आकाश से भी ऊँची है। 3) बालक और दुधमुँहे बच्चे तेरा गुणगान करते हैं। तूने अपने लिए एक सुदृढ़ गढ़ बनाया है। तेरे शत्रु और विद्रोही उसके सामने नहीं टिक सकते। 4) जब मैं …

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स्तोत्र ग्रन्थ – 9

Psalm 9 || भजन संहिता 9 2 (1-2) प्रभु! मैं सारे हृदय से तुझे धन्यवाद दूँगा। मैं तेरे सब अपूर्व कार्यों का बखान करूँगा। 3) मैं उल्लसित हो कर आनन्द मनाता हूँ। सर्वोच्च ईश्वर! मैं तेरे नाम के आदर में भजन गाता हूँ। 4) मेरे शत्रुओं को हट जाना पड़ा। वे तेरे सामने ठोकर खा …

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स्तोत्र ग्रन्थ – 10

Psalm 10 || भजन संहिता 10 1) प्रभु! तू क्यों दूर रहता और संकट के समय छिप जाता है? 2) दुष्ट के घमण्ड के कारण दरिद्र दुःखी हैं, वे उसके कपट के शिकार बनते हैं। 3) दुष्ट अपनी सफलता की डींग मारता है, लोभी प्रभु की निन्दा और तिरस्कार करता है। 4) वह अपने घमण्ड …

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स्तोत्र ग्रन्थ – 11

Psalm 11 || भजन संहिता 11 इश्वर पर भरोसा (संगीत-निर्देशक के लिए। दाऊद का) 1) मैं प्रभु की शरण आया हूँ; तुम मुझ से कैसे कह सकते हो: “पक्षी की तरह पर्वत पर भाग जाओ”? 2) देखो, अंधेरे में निष्कपट लोगों को मारने के लिए दुष्ट जन धनुष चढ़ाते और प्रत्यंचा पर बाण साधते हैं। …

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स्तोत्र ग्रन्थ – 12

Psalm 12 || भजन संहिता 12 इश्वर की सत्यनिष्ठा (संगीत-निर्देशक के लिए। सप्तकमें। एक स्तोत्र। दाऊद का।) 2 (1-2) प्रभु! रक्षा कर! एक भी भक्त नहीं रहा; मनुष्यों में सत्य का लोप हो गया है। 3) लोग एक दूसरे से झूठ बोलते और कपटपूर्ण हृदय से चिकनी-चुपड़ी बातें करते हैं। 4) प्रभु चाटुकारों और डींग …

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स्तोत्र ग्रन्थ – 13

Psalm 13 || भजन संहिता 13 प्रभु पर भरोसा (संगीत-निर्देशक के लिए। एक स्तोत्र। दाऊद का।) 2 (1-2) प्रभु! कब तक? क्या तू मुझे सदा भुलाता रहेगा? कब तक तू मुझ से अपना मुख छिपाये रखेगा? 3) कब तक मैं अपने मन में चिन्ता करता रहूँगा, अपने हृदय में प्रतिदिन दुःख सहता रहूँगा? कब तक …

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स्तोत्र ग्रन्थ – 14

Psalm 14 (13) || भजन संहिता 14 (13) नास्तिक (संगीत-निर्देशक के लिए। दाऊद का।) 1) मूर्ख अपने मन में कहते हैं: “ईश्वर है ही नहीं”। उनका आचरण भ्रष्ट और घृणास्पद है। उन में कोई भी भलाई नहीं करता। 2) ईश्वर यह जानने के लिए स्वर्ग से मनुष्यों पर दृष्टि दौड़ाता है कि उन में कोई …

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