प्रवक्ता ग्रन्थ 22

Ecclesiasticus 22

1) आलसी कीचड़ में पड़े हुए पत्थर जैसा है। सब कोई उसके कलंक की निन्दा करते हैं।

2) आलसी मल के टुकड़े-जैसा है; सब कोई उसे छू कर हाथ झटकारते हैं।

3) दुर्ललित पुत्र पिता का कलंक है और ऐसी पुत्री पिता को हानि पहुँचाती है।

4) समझदार पुत्री को उपयुक्त पति मिलेगा, किन्तु कलंकित पुत्री पिता को दुःख देती है।

5) निर्लज्ज कन्या अपने पिता और पति का कलंक है। दोनों उसका तिरस्कार करते हैं।

6) बेमौके की बात शोक के समय संगीत जैसी है। कोड़े और दण्ड- हर समय समझदारी की बात है।

7) मूर्ख को शिक्षा देना फूटे घड़े के ठीकरे जोड़ने-जैसा है।

8) अनसुनी करने वाले से बात करना गहरी नींद से सोने वाले को जगाने जैसा है।

9) मूर्ख को समझाना सोने वाले से बातचीत करने-जैसा है। अन्त में वह पूँछेगा: “बात क्या है?”

10) मृतक के लिए रोओ: वह ज्योति से वंचित है। मूर्ख के लिए राओ: वह बुद्धि से वंचित है।

11) मृतक के लिए कम रोओ: उसे शान्ति मिली है;

12) किन्तु मूर्ख का जीवन मौत से भी बदतर है।

13) मृतक के लिए सात दिन तक शोक मनाया जाता है, किन्तु मूर्ख और नास्तिक के लिए उनके जीवन भर।

14) मूर्ख से अधिक बातचीत मत करो। और बेसमझ की संगति मत करो।

15) उस से सावधान रहो, जिससे तुम को मुसीबत न हो और जब वह अपने कपड़े झटकारता हो, तो तुम पर उसका मैल न पडे़।

16) उस से दूर रहो: तुम को शान्ति मिलेगी और उसकी नासमझी से कष्ट नहीं होगा।

17) सीसे से भारी क्या होता है? क्या उसका नाम ‘मूर्ख‘ नहीं?

18) मूर्ख व्यक्ति की अपेक्षा बालू, नमक और लोहे का पिण्ड ढोना सरल है।

19) जैसे भवन में कड़ियों का पक्का बन्धन भूकम्प से ढीला नहीं पड़ता, वैसे ही सोच-विचार के बाद मन का संकल्प निर्णयात्मक समय पर विचलित नहीं होता।

20) जो मन सोच-समझ पर दृढ़ हो गया है, वह पक्की दीवार पर गचकारी के अलंकरण-जैसा है।

21) जैसे ऊँची दीवार पर पड़ी कंकड़ियाँ हवा में नहीं टिकी पातीं,

22 (22-23) वैसे ही मूर्खतापूर्ण दुर्बल संकल्प किसी भय के सामने नहीं टिक पाता।

24) आँख पर चोट लगने पर आँसू टपकते हैं और हृदय पर चोट लगने पर मित्रता चली जाती है।

25) जो पक्षियों पर पत्थर मारता, वह उन्हें भगाता है और जो मित्र की निन्दा करता, वह मित्रता भंग करता है।

26) यदि तुमने अपने मित्र के विरुद्ध तलवार खींची है, तो चिन्ता मत करो, उस से तुम्हारा सम्बन्ध पहले-जैसा सम्भव है।

27) यदि तुमने अपने मित्र से कटु बात कही है, तो डरो मत: मेल-मिलाप सम्भव है। किन्तु अपमान, अहंकार, विश्वासघात और कपटपूर्ण आक्रमण के कारण कोई भी मित्र भाग जायेगा।

28) अपने मित्र का उसकी दरिद्रता में साथ दो और तुम उसकी समृद्धि के साझेदार बनोगे।

29) उसकी विपत्ति में उसके प्रति ईमानदार रहो और तुम उसकी विरासत के साझेदार बनोगे।

30) आग से पहले चूल्हे से धुआँ निकलता है; इसी प्रकार रक्तपात के पहली गाली दी जाती है।

31) मुझे अपने मित्र की रक्षा करने में लज्जा का अनुभव नहीं होगा और उसके आने पर मैं उस से नहीं छिप जाऊँगा। यदि मुझे उस से हानि उठानी पड़ेगी,

32) तो सब सुनने वाले उस से सावधान रहेंगे।

33) कौन मेरे मुँह पर पहरा बैठायेगा और मेरे होठों पर सावधानी की मुहर लगायेगा, जिससे मैं उनके द्वारा पाप न करूँ ओैर मेरी जिह्वा मेरा विनाश नहीं करे?

सूक्ति ग्रन्थ को अच्छे से समझने इसके परचिय पर बनाये गए वीडियो को देखिये।