प्रवक्ता ग्रन्थ 5

Ecclesiasticus 5

1) अपनी धन-सम्पत्ति पर भरोसा मत रखो और यह मत कहो, “मुझे किसी बात की कमी नहीं”।

2) प्रबल नैसर्गिक प्रवृत्तियों से हार कर अपने हृदय की वासनाओें को पूरा मत करो।

3) यह मत कहो, “मुझ पर किसी का अधिकार नहीं”; क्योंकि प्रभु तुम्हें अवश्य दण्ड देगा।

4) यह मत कहो, “मैंने पाप किया, तो मेरा क्या बिगड़ा?” क्योंकि प्रभु बड़ा सहनशील है।

5) क्षमा पाने की आशा में पाप-पर-पाप मत करते जाओे।

6) यह मत कहो, “उसकी दया असीम है। वह मेरे असंख्य पाप क्षमा करेगा”।

7) क्योंकि दया के अतिरिक्त उस में क्रोध भी है और उसका कोप पापियों पर भड़क उठता है।

8) प्रभु के पास शीघ्र ही लौटा आओ, दिन-पर-दिन उस में विलम्ब मत करो;

9) क्योंकि प्रभू का क्रोध अचानक भड़क उठेगा; दण्ड के दिन तुम्हारा विनाश होगा।

10) पाप की कमाई पर भरोसा मत रखो, विपत्ति के दिन इस से तुम्हें कोई लाभ नहीं होगा।

11) हर हवा में मत ओसाओ, हर मार्ग पर मत चलो; ऐसा दोमुँहा पापी करता है।

12) अपनी धारणा पर दृढ़ रहो और अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो।

13) दूसरों की बात सुनने के लिए तत्पर रहो और सोच-विचार कर उत्तर दो।

14) जानकारी होने पर अपने पड़ोसी को उत्तर दो। यदि नहीं है, तो मुँह पर हाथ रखो।

15) बोलने से सम्मान और अपमान, दोनों मिलते हैं; जिह्वा मनुष्य के पतन का कारण बनती है।

16) चुगलखोर मत बनो और किसी की बदनामी मत मरो;

17) क्योंकि यदि चोर को लज्जित होना पड़ेगा, तो दोमुँहे को कठोर दण्ड मिलेगा।

सूक्ति ग्रन्थ को अच्छे से समझने इसके परचिय पर बनाये गए वीडियो को देखिये।