थेसलनीकियों के नाम सन्त पौलुस का दूसरा पत्र – अध्याय 02
मसीह का पुनरागमन
1) भाइयो! हमारे प्रभु ईसा मसीह के पुनरागमन और उनके सामने हम लोगों के एकत्र होने के विषय में हमारा एक निवेदन, यह है।
2) किसी भविष्यवाणी, वक्तव्य अथवा पत्र से, जो मेरे कहे जाते हैं, आप लोग आसानी से यह समझ कर न उत्तेजित हों या घबरायें कि प्रभु का दिन आ चुका है।
3) कोई आप लोगों को किसी भी तरह न बहकाये। वह दिन तब तक नहीं आ सकता, जब तक पहले महान् धर्मत्याग न हो जाये और वह पापी मनुष्य, विनाश का वह पुत्र प्रकट न हो,
4) जो अपने घमण्ड में उन सब का विरोध करता और उन से अपने को बड़ा मानता है, जो देवता कहलाते या पूज्य समझे जाते हैं, यहाँ तक कि वह ईश्वर के मन्दिर में विराजमान हो कर स्वयं ईश्वर होने का दावा करता है।
5) क्या आप लोगों को याद नहीं है कि आपके बीच रहते समय मैं आप को ये सब बातें समझाया करता था?
6) आप जानते हैं कि कौन-सी शक्ति उसका अवरोध करती है, जिससे वह अपने समय से पहले प्रकट न हो।
7) अधर्म की रहस्यमय शक्ति अभी क्रियाशील है, किन्तु वह तब तक गुप्त रहेगी, तब तक उसका अवरोध करने वाला न हटे।
8) तब विधर्मी प्रकट होगा और प्रभु ईसा अपने मुख के निश्वास से उसका वध करेंगे और अपने आगमन के प्रताप से उसका सर्वनाश करेंगे।
9) वह विधर्मी शैतान से प्रेरित हो कर आयेगा। जिन लोगों का सर्वनाश निश्चित है, वह उन्हें हर प्रकार के शक्तिशाली चिह्न और कपटपूर्ण चमत्कार दिखायेगा।
10) और पाप करने के लिए हर प्रकार का प्रलोभन देगा; क्योंकि उन्होंने सत्य को स्वीकार नहीं किया, जो उन्हें बचाने में समर्थ था।
11) यही कारण है कि ईश्वर उन में भ्रान्ति का मनोभाव उत्पन्न करता है, जिससे वे झूठ पर विश्वास करें और
12) वे सब दण्डित किये जायें, जिन्होंने सत्य पर विश्वास नहीं किया और अधर्म का पक्ष लिया है।
विश्वास में दृढ़ बने रहें
13) भाइयो! हमें प्रभु को आप लोगों के विषय में निरन्तर धन्यवाद देना चाहिए। प्रभु आप को प्यार करते हैं। ईश्वर ने प्रारम्भ से ही आप को चुना, जिससे आप पवित्र करने वाले आत्मा और सत्य में अपने विश्वास द्वारा मुक्ति प्राप्त करें।
14) उसने हमारे सुसमाचार द्वारा आप को बुलाया, जिससे आप हमारे प्रभु ईसा मसीह की महिमा के भागी बनें।
15) इसलिए, भाइयो! आप ढारस रखें और उस शिक्षा में दृढ़ बने रहें, जो आप को हम से मौखिक रूप से या पत्र द्वारा मिली है।
16) हमारे प्रभु ईसा मसीह स्वयं तथा ईश्वर, हमारा पिता – जिसने हमें इतना प्यार किया और हमें चिरस्थायी सान्त्वना तथा उज्जवल आशा का वरदान दिया है-
17) आप लोगों को सान्त्वना देते रहें तथा हर प्रकार के भले काम और बात में सुदृढ़़ बनाये रखें।
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