योहन अध्याय 10

सन्त योहन रचित सुसमाचार- अध्याय 10

योहन अध्याय 10 की व्याख्या
संत योहन रचित सुसमाचार अध्याय 10 में बहुत ही प्रसिद्ध भला गड़ेरिया का प्रवचन है। लगभग हर अध्याय में प्रभु के बारे में लोगों के बीच में मतभेद का वर्णन है। उसी प्रकार संत योहन रचित सुसमाचार अध्याय 10 में भी ऐसे ही मतभेद है।

गड़ेरिया और उसकी भेड़ें – प्रभु येसु गड़ेरिया के कुछ गुणों का वर्णन करते हैं। वह फाटक से प्रवेश करता, उसकी भेड़ें उसकी आवाज पहचानती हैं और वह भेड़ों के आगे-आगे चलता है।

मैं भेड़शाला का द्वार हूँ – प्रभु ही मार्ग हैं और भेड़शाला का द्वार भी। जीवन में प्रवेश करने उन्हीं से हो कर जाना पड़ेगा।

भला गड़ेरिया मैं हूँ – भला गडरिया की पहचान यह है कि वह अपनी भेड़ों को जानता और उनके लिए अपना प्राण दे देता है। प्रभु की मृत्यु कोई हत्या नहीं, बल्कि बलिदान है। क्योंकि वह स्वयं स्वेच्छा से अपना प्राण दे देता है।

नोट :- प्रभु दुनिया के राजाओं के समान नहीं हैं बल्कि वह चरवाहा है। इस अध्याय में भला चरवाहे के बारे में जो वर्णन है, यही “ख्रीस्त राजा” के बारे में भी है। प्रभु येसु के लिए “राजा” और “चरवाहा” दोनों शब्दों को एक दूसरे के लिए हम प्रयोग कर सकते हैं। इसी सन्दर्भ में हमें स्तोत्र ग्रन्थ अध्याय 23 को पढ़ना चाहिए।

यहूदियों में मतभेद – संत योहन रचित सुसमाचार में प्रभु के हर चिन्ह (चमत्कार) और प्रवचन के बाद लोगों में मतभेद को देखा जा सकता है। कुछ लोग प्रभु के पक्ष में और कुछ विरुद्ध हो जाते हैं। और कोई भी उनसे अछूता नहीं रह सकता।

येरूसालेम में प्रतिष्ठान-पर्व – प्रभु और यहूदियों के बीच का टकराव और भी गहरा होता जाता है। प्रभु ईश्वर के बराबरी होने का दावा और जोरों से करने लगते हैं जो यहूदियों के लिए ईश-निंदा है। वास्तव में यह भी एक दोष है जिसके लिए प्रभु को मृत्यु-दंड दिया गया था।

यर्दन के उस पार – प्रभु यहूदियों से बचकर यर्दन के उस पार चले जाते हैं। यहाँ येरूसालेम के विपरीत, बहुत सारे लोग प्रभु येसु में विश्वास करने लगते हैं।

गड़ेरिया और उसकी भेड़ें

1) “मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ – जो फाटक से भेड़शाला में प्रवेश नहीं करता, बल्कि दूसरे रास्ते से चढ़ कर आता है, वह चोर और डाकू है।

2) जो फाटक से प्रवेश करता है, वही भेड़ों का गड़ेरिया है

3) और उसके लिए दरवान फाटक खोल देता है। भेड़ें उसकी आवाज पहचानती हैं। वह नाम ले-ले कर अपनी भेड़ों को बुलाता और बाहर ले जाता है।

4) अपनी भेड़ों को बाहर निकाल लेने के बाद वह उनके आगे-आगे चलता है और वे उसके पीछे-पीछे आती हैं, क्योंकि वे उसकी आवाज पहचानती हैं।

5) वे अपरिचित के पीछे-पीछे नहीं चलेंगी, बल्कि उस से भाग जायेंगी; क्योंकि वे अपरिचितों की आवाज नहीं पहचानतीं।”

6) ईसा ने उन्हें यह दृष्टान्त सुनाया, किन्तु वे नहीं समझे कि वे उन से क्या कह रहे हैं।

मैं भेड़शाला का द्वार हूँ

7) ईसा ने फिर उन से कहा, “मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ – भेड़शाला का द्वार मैं हूँ।

8) जो मुझ से पहले आये, वे सब चोर और डाकू हैं; किन्तु भेड़ों ने उनकी नहीं सुनी।

9) मैं ही द्वार हूँ। यदि कोई मुझ से हो कर प्रवेश करेगा, तो उसे मुक्ति प्राप्त होगी। वह भीतर-बाहर आया-जाया करेगा और उसे चरागाह मिलेगा।

10) “चोर केवल चुराने, मारने और नष्ट करने आता है। मैं इसलिए आया हूँ कि वे जीवन प्राप्त करें- बल्कि परिपूर्ण जीवन प्राप्त करें।

भला गड़ेरिया मैं हूँ

11) “भला गड़ेरिया मैं हूँ। भला गड़ेरिया अपनी भेड़ों के लिए अपने प्राण दे देता है।

12) मज़दूर, जो न गड़ेरिया है और न भेड़ों का मालिक, भेडि़ये को आते देख भेड़ों को छोड़ कर भाग जाता है और भेडि़या उन्हें लूट ले जाता है और तितर-बितर कर देता है।

13) मज़दूर भाग जाता है, क्योंकि वह तो मजदूर है और उसे भेड़ों की कोई चिन्ता नहीं।

14) “भला गडेरिया मैं हूँ। जिस तरह पिता मुझे जानता है और मैं पिता को जानता हूँ, उसी तरह मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं।

15) मैं भेड़ों के लिए अपना जीवन अर्पित करता हूँ।

16) मेरी और भी भेड़ें हैं, जो इस भेड़शाला की नहीं हैं। मुझे उन्हें भी ले आना है। वे भी मेरी आवाज सुनेंगी। तब एक ही झुण्ड होगा और एक ही गड़ेरिया।

17) पिता मुझे इसलिए प्यार करता है कि मैं अपना जीवन अर्पित करता हूँ; बाद में मैं उसे फिर ग्रहण करूँगा।

18) कोई मुझ से मेरा जीवन नहीं हर सकता; मैं स्वयं उसे अर्पित करता हूँ। मुझे अपना जीवन अर्पित करने और उसे फिर ग्रहण करने का अधिकार है। मुझे अपने पिता की ओर से यह आदेश मिला है।”

यहूदियों में मतभेद

19) ईसा के इन बचनों के कारण यहूदियों में फिर मतभेद हो गया।

20) बहुत-से लोग कहते थे, “उसे अपदूत लगा है, वह प्रलाप करता है। तुम उसकी क्यों सुनते हो?”

21) कुछ लोग कहते थे, “ये वचन अपदूतग्रस्त के नहीं हैं। क्या अपदूत अन्धों को आँखें दे सकता है?”

येरूसालेम में प्रतिष्ठान-पर्व

22) उन दिनों येरूसालेम में प्रतिष्ठान पर्व मनाया जा रहा था। जाडे का समय था।

23) ईसा मंदिर में सुलेमान के मण्डप में टहल रहे थे।

24) यहूदियों ने उन्हें घेर लिया और कहा आप हमें कब तक असमंजस में रखे रहेंगे? यदि आप मसीह हैं, तो हमें स्पष्ट शब्दों में बता दीजिये।

25) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, मैंने तुम लोगों को बताया और तुम विश्वास नहीं करते। जो कार्य मैं अपने पिता के नाम पर करता हूँ, वे ही मेरे विषय में साक्ष्य देते हैं।

26) किंतु तुम विश्वास नहीं करते, क्योंकि तुम मेरी भेडें नहीं हो।

27) मेरी भेडें मेरी आवाज पहचानती है। मैं उन्हें जानता हँ और वे मेरा अनुसरण करती हैं।

28) मैं उन्हें अनंत जीवन प्रदान करता हूँ। उनका कभी सर्वनाश नहीं होगा और उन्हें मुझ से कोई नहीं छीन सकेगा।

29) उन्हें मेरे पिता ने मुझे दिया है वह सब से महान है। उन्हें पिता से कोई नहीं छीन सकता।

30) मैं और पिता एक हैं।

31) यहूदियों ने ईसा को मार डालने के लिये फिर पत्थर उठाये।

32) ईसा ने उन से कहा, “मैनें अपने पिता के सामर्थ्य से तुम लोगों के सामने बहुत से अच्छे कार्य किये हैं। उन में किस कार्य के लिये मुझे पत्थरों से मार डालना चाहते हो?”

33) यहूदियों ने उत्तर दिया, “किसी अच्छे कार्य के लिये नहीं, बल्कि ईश-निन्दा के लिये हम तुम को पत्थरों से मार डालना चाहते हैं क्योंकि तुम मनुष्य होकर अपने को ईश्वर मानते हो।”

34) ईसा ने कहा, “क्या तुम लोगो की संहिता में यह नहीं लिखा है, मैने कहा तुम देवता हो?

35) जिन को ईश्वर का संदेश दिया गया था, यदि संहिता ने उन को देवता कहा- और धर्मग्रंथ की बात टल नहीं सकती-

36) तो जिसे पिता ने अधिकार प्रदान कर संसार में भेजा है, उस से तुम लोग यह कैसे कहते हो- तुम ईश-निन्दा करते हो; क्योंकि मैने कहा, मैं ईश्वर का पुत्र हूँ?

37) यदि मैं अपने पिता के कार्य नहीं करता, तो मुझ पर विश्वास न करो।

38) किन्तु यदि मैं उन्हें करता हूँ, तो मुझ पर विश्वास नहीं करने पर भी तुम कार्यों पर ही विश्वास करो, जिससे तुम यह जान जाओ और समझ लो कि पिता मुझ में है और मैं पिता में हूँ।”

39) इस पर उन्होंने फिर ईसा को गिरफ़्तार करने का प्रयत्न किया, परन्तु वे उनके हाथ से निकल गये।

यर्दन के उस पार

40) ईसा यर्दन के पार उस जगह लौट गये, जहाँ पहले योहन बपतिस्मा दिया करता था, और वहीं रहने लगे।

41) बहुत-से लोग उनके पास आये। वे कहते थे, योहन ने तो कोई चमत्कार नहीं दिखाया, परन्तु उसने इनके विषय में जो कुछ कहा, वह सब सच निकला।

42) और वहाँ बहुत से लोगों ने उन में विश्वास किया।

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