योहन अध्याय 09

सन्त योहन रचित सुसमाचार- अध्याय 09

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योहन अध्याय 09 की व्याख्या
संत योहन रचित सुसमाचार अध्याय 9 में प्रभु का एक चिन्ह है और उसके बारे में फ़रीसियों की जाँच-पड़ताल का वर्णन है। इस अध्याय को पूरे फीलिंग्स के साथ पढ़ने की जरुरत है।

जन्मान्ध को दृष्टिदान – अंधापन एक कारण न तो वह व्यक्ति है और न ही उसके माता-पिता। प्रभु येसु कहते हैं, “यह इसलिए जन्म से अन्धा है कि इसे चंगा करने से ईश्वर का सामर्थ्य प्रकट हो जाये।” इसलिए यह एक चमत्कार नहीं, बल्कि एक चिन्ह है।

फ़रीसियों की जाँच-पड़ताल – प्रभु एक विश्राम दिन जन्मान्ध को दृष्टिदान दिए थे। इसलिए लोग चंगाई पाए व्यक्ति को फ़रीसियों के पास ले जाते हैं। फरीसी पहले उस व्यक्ति की जाँच-पड़ताल करते हैं और फिर उसके माता-पिता की।

इस लम्बी जाँच-पड़ताल में वह व्यक्ति फ़रीसियों पर भारी पड़ जाता है। चिन्ह का यही परिणाम है – वह लोगों को प्रभु में विश्वास उत्पन्न करता या उनके विरोधी बना देता।
अंत में हम देखते हैं कि प्रभु उसे विश्वास का वरदान देते हैं।

फ़रीसियों का पाप – देखते हुए भी विश्वास नहीं करना पाप है। यही फ़रीसी कर रहे थे। चिन्ह और चमत्कार देखकर भी वे विश्वास नहीं कर सके।
हम कैसे हैं?

जन्मान्ध को दृष्टिदान

1) रास्ते में ईसा ने एक मनुष्य को देखा, जो जन्म से अन्धा था।

2) उनके शिष्यों ने उन से पूछा, “गुरुवर! किसने पाप किया था, इसने अथवा इसके माँ-बाप ने, जो यह मनुष्य जन्म से अन्धा है?”

3) ईसा ने उत्तर दिया, “न तो इस मनुष्य ने पाप किया और न इसके माँ-बाप ने। यह इसलिए जन्म से अन्धा है कि इसे चंगा करने से ईश्वर का सामर्थ्य प्रकट हो जाये।

4) जिसने मुझे भेजा, हमें उसका कार्य दिन बीतने से पहले ही पूरा कर देना है। रात आ रही है, जब कोई भी काम नहीं कर सकता।

5) मैं जब तक संसार में हूँ, तब तक संसार की ज्योति हूँ।”

6) उन्होंने यह कह कर भूमि पर थूका, थूक से मिट्टी सानी और वह मिट्टी अन्धे की आँखों पर लगा कर

7) उस से कहा, “जाओ, सिलोआम के कुण्ड में नहा लो”। सिलोआम का अर्थ है ‘प्रेषित’। वह मनुष्य गया और नहा कर वहाँ से देखता हुआ लौटा।

8) उसके पड़ोसी और वे लोग, जो उसे पहले भीख माँगते देखा करते थे, बोले, “क्या यह वही नहीं है, जो बैठे हुए भीख माँगा करता था?”

9) कुछ लोगों ने कहा, “हाँ, यह वही है”। कुछ ने कहा, “नहीं, यह उस-जैसा कोई और होगा”। उसने कहा, मैं वही हूँ”।

10) इस पर लोगों ने उस से पूछा, “तो, तुम कैसे देखने लगे?”

11) उसने उत्तर दिया, “जो मनुष्य ईसा कहलाते हैं, उन्होंने मिट्टी सानी और उसे मेरी आँखों पर लगा कर कहा- सिलोआम जाओ और नहा लो। मैं गया और नहाने के बाद देखने लगा।”

12) उन्होंने उस से पूछा, “वह कहाँ है?” और उसने उत्तर दिया, “मैं नहीं जानता”।

फ़रीसियों की जाँच-पड़ताल

13) लोग उस मनुष्य को, जो पहले अन्धा था, फरीसियों के पास ले गये।

14) जिस दिन ईसा ने मिट्टी सान कर उसकी आँखें अच्छी की थीं, वह विश्राम का दिन था।

15) फिरीसियों ने भी उस से पूछा कि वह कैसे देखने लगा। उसने उन से कहा, “उन्होंने मेरी आँखों पर मिट्टी लगा दी, मैंने नहाया और अब मैं देखता हूँ”।

16) इस पर कुछ फरीसियों ने कहा, “वह मनुष्य ईश्वर के यहाँ से नहीं आया है; क्योंकि वह विश्राम-दिवस के नियम का पालन नहीं करता”। कुछ लोगों ने कहा, “पापी मनुष्य ऐसे चमत्कार कैसे दिखा सकता है?” इस तरह उन में मतभेद हो गया।

17) उन्होंने फिर अन्धे से पूछा, “जिस मनुष्य ने तुम्हारी आँखें अच्छी की हैं, उसके विषय में तुम क्या कहते हो?” उसने उत्तर दिया, “वह नबी है”।

18) यहूदियों को विश्वास नहीं हो रहा था कि वह अन्धा था और अब देखने लगा है। इसलिए उन्होंने उसके माता-पिता को बुला भेजा

19) और पूछा, “क्या यह तुम्हारा बेटा है, जिसके विषय में तुम यह कहते हो कि यह जन्म से अन्धा था? तो अब यह कैसे देखता है?”

20) उसके माता-पिता ने उत्तर दिया, “हम जानते हैं कि यह हमारा बेटा है और यह जन्म से अन्धा था;

21) किन्तु अब यह कैसे देखता है- हम यह नहीं जानते। हम यह भी नहीं जानते कि किसने इसकी आँखें अच्छी की हैं। यह सयाना है, इसी से पूछ लीजिए। यह अपनी बात आप ही बोलगा।”

22) उसके माता-पिता ने यह इसलिए कहा कि वे यहूदियों से डरते थे। यहूदी यह निर्णय कर चूके थे कि यदि कोई ईसा को मसीह मानेगा, तो वह सभागृह से बहिष्कृत कर दिया जायेगा।

23) इसलिए उसके माता-पिता ने कहा-“यह सयाना है, इसी से पूछ लीजिए’।

24) उन्होंने उस मनुष्य को, जो पहले अन्धा था, फिर बुला भेजा और उसे शपथ दिला कर कहा, “हम जानते हैं कि वह मनुष्य पापी है”।

25) उसने उत्तर दिया, “वह पापी है या नहीं, इसके बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता। मैं यही जानता हूँ कि मैं अन्धा था और अब देखता हूँ।”

26) इस पर उन्होंने उस से फिर पूछा, “उसने तुम्हारे साथ क्या किया? उसने तुम्हारी आँखे कैसे अच्छी कीं?

27) उसने उत्तर दिया, “मैं आप लोगों को बता चुका हूँ, लेकिन आपने उस पर ध्यान नहीं दिया। अब फिर क्यों सुनना चाहते हैं? क्या आप लोग भी उनके शिष्य बनना चाहते हैं?”

28) वे उसे बुरा-भला कहते हुए बोले, “तू ही उसका शिष्य बन जा। हम तो मूसा के शिष्य हैं।

29) हम जानते हैं कि ईश्वर ने मूसा से बात की है, किन्तु उस मनुष्य के विषय में हम नहीं जानते कि वह कहाँ का है।”

30) उसने उन्हें उत्तर दिया, “यही तो आश्चर्य की बात है। उन्होंने मुझे आँखे दी हैं और आप लोग यह भी नहीं जानते कि वह कहाँ के हैं।

31) हम जानते हैं कि ईश्वर पापियों की नहीं सुनता। वह उन लोगों की सुनता है, जो भक्त हैं और उसकी इच्छा पूरी करते हैं।

32) यह कभी सुनने में नही आया कि किसी ने जन्मान्ध को आँखें दी हैं।

33) यदि वह मनुष्य ईश्वर के यहाँ से नहीं आया होता, तो वह कुछ भी नहीं कर सकता।”

34) उन्होंने उस से कहा, “तू तो बिलकुल पाप में ही जन्मा है। तू हमें सिखाने चला है?” और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया।

35) ईसा ने सुना कि फरीसियों ने उसे बाहर निकाल दिया है; इसलिए मिलने पर उन्होंने उस से कहा, “क्या तुम मानव पूत्र में विश्वास करते हो?”

36) उसने उत्तर दिया, “महोदय! मुझे बता दीजिए कि वह कौन है, जिससे मैं उस में विश्वास कर सकूँ।

37) ईसा ने उस से कहा, “तुमने उसे देखा है। वह तो तुम से बातें कर रहा है।”

38) उसने उन्हें दण्डवत् करते हुए कहा “प्रभु! मैं विश्वास करता हूँ”।

फ़रीसियों का पाप

39) ईसा ने कहा, “मैं लोगों के प्रथक्करण का निमित्त बन कर संसार में आया हूँ, जिससे जो अन्धे हैं, वे देखने लगें और जो देखते हैं, वे अन्धे हो जायें”।

40) जो फरीसी उनके साथ थे, वे यह सुन कर बोले, “क्या हम भी अन्धे हैं?”

41) ईसा ने उन से कहा, “यदि तुम लोग अन्धे होते, तो तुम्हें पाप नहीं लगता, परन्तु तुम तो कहते हो कि हम देखते हैं; इसलिए तुम्हारा पाप बना रहता है।

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