योहन अध्याय 20

सन्त योहन का सुसमाचार- अध्याय 20

योहन अध्याय 20 की व्याख्या
संत योहन रचित सुसमाचार अध्याय 20 हमें प्रभु येसु के पुनरुत्थान का आनंद-का-सन्देश और अपने शिष्यों को उनके दर्शनों का वर्णन है।

ईसा का पुनरुत्थान खाली कब्र जरूर प्रभु के पुनरुत्थान के सबूत के रूप में नहीं लिया जा सकता। क्योंकि जैसे अफवाह फैला दिया गया कि रात को उनके शिष्य आकर उनका शव ले गए। प्रभु “के सिर पर जो अँगोछा बँधा था वह पट्टियों के साथ नहीं बल्कि दूसरी जगह तह किया हुआ अलग पडा हुआ” था। मानो कोई सोकर उठा हो और कपडा को तह कर रखा हो। यह जरूर प्रभु के पुनरुत्थान का एक सबूत है।

मरियम मगदलेना को दर्शन – खाली कब्र देखकर पेत्रुस और योहन दुखी होकर वहाँ से चले गए थे। लेकिन मरियम मगदलेना रोती-रोती वहीं खड़ी रही। वह अपने प्रभु के शरीर का विलेपन करने सुगन्धित द्रव्य लेकर पहुँची थी। अपने प्रभु को देखे बिना वह बहुत ही व्याकुल हो उठी। पुनर्जीवित प्रभु उसकी चाहत जानते थे, इसलिए उसे ही सर्वप्रथम दर्शन दिए। और उसको अपने पुनरुत्थान का प्रेरित बनाकर उसे अपने शिष्यों के पास भेज दिए।

संत योहन रचित सुसमाचार में हम पाते हैं कि जो भी प्रभु का दर्शन किया वह विश्वास करता है और उसका प्रेरित बनकर दूसरों को सन्देश देता और दूसरों को भी प्रभु के पास ले आता है। यहाँ भी वह जारी है।

प्रेरितों को दर्शन – पुनर्जीवित प्रभु अपने डरे हुए प्रेरितों को दर्शन देते हैं और उन्हें अपना आत्मा और शांति देते हैं। पवित्र आत्मा के द्वारा उन्हें पाप-क्षमा का अधिकार भी प्रदान करते और उन्हें भेजते हुए कहते हैं, “जिस प्रकार पिता ने मुझे भेजा, उसी प्रकार मैं तुम्हें भेजता हूँ।”
साक्षी बनना प्रभु के दर्शन पाने और उनके शिष्य होने का प्रमाण है। यह उस समय के लिए ही नहीं, हमारे समय के लिए भी लाहू है।

प्रेरितों को द्वितीय दर्शन – प्रभु के प्रथम दर्शन के समय थोमस उनके साथ नहीं थे। उनकी अनुपस्थिति हमारे लिए एक वरदान, क्योंकि प्रभु हम सबों को “धन्य” घोषित करते हैं ! वे थोमस से कहते हैं, “क्या तुम इसलिये विश्वास करते हो कि तुमने मुझे देखा है? धन्य हैं वे जो बिना देखे ही विश्वास करते हैं।” हम सभी प्रभु को बिना देखे ही विश्वास करते हैं।

संत पौलुस कहते हैं कि हमें देखने की नहीं बल्कि सुनने की जरुरत है। क्योंकि “सुनने से विश्वास उत्पन्न होता है”।

समापन – प्रभु जो कुछ किये या सिखाये, वे सब लिखे नहीं गए हैं। लेकिन जो कुछ लिखा गया है, इसके द्वारा हम विश्वास करें। क्योंकि संत योहन कहते हैं, “इनका ही विवरण दिया गया है जिससे तुम विश्वास करो कि ईसा ही मसीह, ईश्वर के पुत्र हैं और विश्वास करने से उनके नाम द्वारा जीवन प्राप्त करो।”

ईसा का पुनरुत्थान

1) मरियम मगदलेना सप्ताह के प्रथम दिन, तडके मुँह अँधेरे ही कब्र के पास पहुँची। उसने देखा कि कब्र पर से पत्थर हटा दिया गया है।

2) उसने सिमोन पेत्रुस तथा उस दूसरे शिष्य के पास, जिसे ईसा प्यार करते थे, दौडती हुई आकर कहा, “वे प्रभु को कब्र में से उठा ले गये हैं और हमें पता नहीं कि उन्होंने उन को कहाँ रखा है।”

3) पेत्रुस और वह दूसरा शिष्य कब्र की ओर चल पडे।

4) वे दोनों साथ-साथ दौडे। दूसरा शिष्य पेत्रुस को पिछेल कर पहले कब्र पर पहुँचा।

5) उसने झुककर यह देखा कि छालटी की पट्टियाँ पडी हुई हैं, किन्तु वह भीतर नहीं गया।

6) सिमोन पेत्रुस उसके पीछे-पीछे चलकर आया और कब्र के अन्दर गया। उसने देखा कि पट्टियाँ पडी हुई हैं।

7) और ईसा के सिर पर जो अँगोछा बँधा था वह पट्टियों के साथ नहीं बल्कि दूसरी जगह तह किया हुआ अलग पडा हुआ है।

8) तब वह दूसरा शिष्य भी जो कब्र के पास पहले आया था भीतर गया। उसने देखा और विश्वास किया,

9) क्योंकि वे अब तक धर्मग्रन्थ का वह लेख नहीं समझ पाये थे कि जिसके अनुसार उनका जी उठना अनिवार्य था।

10) इसके बाद शिष्य अपने घर लौट गये।

मरियम मगदलेना को दर्शन

11) मरियम कब्र के पास, बाहर रोती रही। उसने रोते रोते झुककर कब्र के भीतर दृष्टि डाली

12) और जहाँ ईसा का शव रखा हुआ था वहाँ उजले वस्त्र पहने दो स्वर्गदूतों को बैठा हुआ देखा- एक को सिरहाने और दूसरे को पैताने।

13) दूतों ने उस से कहा, “भद्रे! आप क्यों रोती हैं?” उसने उत्तर दिया, “वे मेरे प्रभु को उठा ले गये हैं और मैं नहीं जानती थी कि उन्होंने उन को कहाँ रखा है”।

14) वह यह कहकर मुड़ी और उसने ईसा को वहाँ खडा देखा, किन्तु उन्हें पहचान नहीं सकी।

15) ईसा ने उस से कहा, “भद्रे! आप क्यों रोती हैं। किसे ढूँढ़ती हैं? मरियम ने उन्हें माली समझकर कहा, “महोदय! यदि आप उन्हें उठा ले गये, तो मुझे बता दीजिये कि आपने उन्हें कहाँ रखा है और मैं उन्हें ले जाऊँगी”।

16) इस पर ईसा ने उस से कहा, “मरियम!” उसने मुड कर इब्रानी में उन से कहा, “रब्बोनी” अर्थात गुरुवर।

17) ईसा ने उस से कहा, “चरणों से लिपटकर मुझे मत रोको। मैं अब तक पिता के पास ऊपर नहीं गया हूँ। मेरे भाइयेां के पास जाकर उन से यह कहो कि मैं अपने पिता और तुम्हारे पिता, अपने ईश्वर और तुम्हारे ईश्वर के पास ऊपर जा रहा हूँ।”

18) मरियम मगदलेना ने जाकर शिष्यों से कहा कि मैंने प्रभु को देखा है और उन्होंने मुझे यह सन्देश दिया।

प्रेरितों को दर्शन

19) उसी दिन, अर्थात सप्ताह के प्रथम दिन, संध्या समय जब शिष्य यहूदियों के भय से द्वार बंद किये एकत्र थे, ईसा उनके बीच आकर खडे हो गये। उन्होंने शिष्यों से कहा, “तुम्हें शांति मिले!”

20) और इसके बाद उन्हें अपने हाथ और अपनी बगल दिखायी। प्रभु को देखकर शिष्य आनन्दित हो उठे। ईसा ने उन से फिर कहा, “तुम्हें शांति मिले!

21) जिस प्रकार पिता ने मुझे भेजा, उसी प्रकार मैं तुम्हें भेजता हूँ।”

22) इन शब्दों के बाद ईसा ने उन पर फूँक कर कहा, “पवित्र आत्मा को ग्रहण करो!

23) तुम जिन लोगों के पाप क्षमा करोगे, वे अपने पापों से मुक्त हो जायेंगे और जिन लोगों के पाप क्षमा नहीं करोगे, वे अपने पापों से बँधे रहेंगे।

प्रेरितों को द्वितीय दर्शन

24) ईसा के आने के समय बारहों में से एक थोमस जो यमल कहलाता था, उनके साथ नहीं था।

25) दूसरे शिष्यों ने उस से कहा, “हमने प्रभु को देखा है”। उसने उत्तर दिया, “जब तक मैं उनके हाथों में कीलों का निशान न देख लूँ, कीलों की जगह पर अपनी उँगली न रख दूँ और उनकी बगल में अपना हाथ न डाल दूँ, तब तक मैं विश्वास नहीं करूँगा।

26) आठ दिन बाद उनके शिष्य फिर घर के भीतर थे और थोमस उनके साथ था। द्वार बन्द होने पर भी ईसा उनके बीच आ कर खडे हो गये और बोले, “तुम्हें शांति मिले!”

27) तब उन्होने थोमस से कहा, “अपनी उँगली यहाँ रखो। देखो- ये मेरे हाथ हैं। अपना हाथ बढ़ाकर मेरी बगल में डालो और अविश्वासी नहीं, बल्कि विश्वासी बनो।”

28 थोमस ने उत्तर दिया, “मेरे प्रभु! मेरे ईश्वर!”

29) ईसा ने उस से कहा, “क्या तुम इसलिये विश्वास करते हो कि तुमने मुझे देखा है? धन्य हैं वे जो बिना देखे ही विश्वास करते हैं।”

समापन

30) ईसा ने अपने शिष्यों के सामने और बहुत से चमत्कार दिखाये जिनका विवरण इस पुस्तक में नहीं दिया गया है।

31) इनका ही विवरण दिया गया है जिससे तुम विश्वास करो कि ईसा ही मसीह, ईश्वर के पुत्र हैं और विश्वास करने से उनके नाम द्वारा जीवन प्राप्त करो।

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