लूकस अध्याय 12

सन्त लूकस का सुसमाचार – अध्याय 12

लूकस अध्याय 12 का परिचय

संत लूकस रचित सुसमाचार अध्याय 12 में प्रभु येसु की कुछ महत्वपूर्ण बातों को देख सकते हैं :-

निर्भीकता – निडरता परिपूर्ण जीवन और स्वतंत्रता की पहचान है। इस दुनियायी जीवन में हम डरते-डरते जीते हैं। डर जीवन का दूसरा नाम भी लग सकता है। प्रभु येसु ही हमें सच्ची स्वतंत्रता का वरदान दे सकते हैं। निडरता का कारण यह नहीं कि हम सक्षम हैं; बल्कि ईश्वर से हमारा सम्बन्ध। ईश्वर हम हर एक से व्यक्तिगत रूप से सम्बन्ध रखते हैं, न कि एक भीड़ से। हमारी पहचान, शक्ति, निर्भीकता, स्वतंत्रता, और संपूर्ण जीवन का स्रोत ईश्वर के साथ हमारा सम्बन्ध ही है।

मूर्ख धनी का दृष्टान्त – धन अलग-अलग होता है। जो एक देश में या जगह पर धन माना जाता है, जरुरी नहीं है कि दूसरे जगह पर भी धन माना जाये। जो दुनिया में धन माना जाता है, वो सब स्वर्ग में धन नहीं माना जाता है। इसलिए प्रभु कहते हैं कि हमें ईश्वर की दृष्टि में धनी बनने की जरुरत है।

विधाता पर भरोसा – यह शिक्षा हमें जीने का भरोसा देती है। ऊपर की शिक्षा की पूर्णता के रूप में हम इसको देख सकते हैं। ईश्वर हमारे पिता हैं और हम सब उनकी संतान हैं। प्रभु येसु इसी बात को बार-बार दोहराते हैं, “तुम्हारा पिता जानता है कि तुम्हें इनकी ज़रूरत है”। स्वर्गीय भंडार हमारे सामने खोल रख दिया गया है !

सच्चा धन – ईश्वर की दृष्टि में धनी बनने के बारे में प्रभु की शिक्षा हमें आगे ले जाता है। यहाँ हमें बताया जाता है कि सच्चा धन क्या है। प्रभु कहते हैं कि सच्चा धन स्वर्ग में जमा की जाने वाली “एक अक्षय पूँजी” है। हम कैसे पहचानें कि हमारा सच्चा धन कहाँ है? प्रभु कहते हैं, “जहाँ तुम्हारी पूँजी है, वहीं तुम्हारा हृदय भी होगा”। हम जाँच कर देखें कि हमारा हृदय कहाँ है।

चौकसी – अंत कब आएगा कोई भी नहीं जनता है। इसलिए प्रभु हमें हमेशा तैयार रहने को कहते हैं। इसलिए हमें अपनी मृत्यु अपनी आँखों के सामने रख कर जीने कहा गया है।

ईमानदार और बेईमान कारिन्दा – हर व्यक्ति को कोई न कोई जिम्मेदारी दी गयी है। उनको हमेशा निभाते रहना हमारा कर्त्तव्य है।
संघर्ष – प्रभु एक लक्ष्य, एक मिशन में आये हुए थे। उनका शरीरधारण का कारण भी वही है। प्रभु कहते हैं कि वे आग लेकर आये। यहाँ आग और बपतिस्मा उनकी मुक्तिदायी मृत्यु की ओर संकेत करते हैं।

फूट का कारण – प्रभु येसु शांति-का-राजा- जरूर कहलाते हैं। लेकिन वे कहते हैं कि वे फूट डालने आये हैं। क्योंकि कोई भी प्रभु को अनदेखा नहीं कर सकता। वह या तो प्रभु का साथ होगा या विरुद्ध।

समय की पहचान – अलग-अलग क्षेत्र के लिए अलग प्रकार की ज्ञान की जरुरत होती है। हम इस दुनिया के बारे में बहुत जानकारी रखते हैं, लेकिन स्वर्गराज्य को महत्व नहीं देते हैं और उसके बारे में बहुत काम जानकारी रखते हैं।

मुद्दई से समझौता – आपस में प्यार से रहने के बारे में प्रभु हमें शिक्षा देते हैं। आपसी मदभेद को लेकर न्यायालय जाने से बेहतर आपसी समझौता करना है।

निर्भीकता

1) उस समय भीड़़ इतनी बढ़ गयी थी कि लोग एक दूसरे को कुचल रहे थे। ईसा मुख्य रूप से अपने शिष्यों से यह कहने लगे, “फ़रीसियों के कपटरूपी ख़मीर से सावधान रहो।

2) ऐसा कुछ भी गुप्त नहीं है, जो प्रकाश में नहीं लाया जायेगा और ऐसा कुछ भी छिपा हुआ नहीं है, जो प्रकट नहीं किया जायेगा।

3) तुमने जो अँधेरे में कहा है, वह उजाले में सुना जायेगा और तुमने जो एकान्त में फुसफुसा कर कहा है, वह पुकार-पुकार कर दुहराया जायेगा।

4) “मैं तुम, अपने मित्रों से कहता हूँ – जो लोग शरीर को मार डालते हैं, परन्तु उसके बाद और कुछ नहीं कर सकते, उन से नहीं डरो।

5) मैं तुम्हें बताता हूँ कि किस से डरना चाहिए। उस से डरो, जिसका मारने के बाद नरक में डालने का अधिकार है। हाँ, मैं तुम से कहता हूँ, उसी से डरो।

6) “क्या दो पैसे में पाँच गोरैया नहीं बिकतीं? फिर भी ईश्वर उन में एक को भी नहीं भुलाता है।

7) हाँ, तुम्हारे सिर का बाल-बाल गिना हुआ है। इसलिए नहीं डरो। तुम बहुतेरी गौरैयों से बढ़ कर हो।

8) “मैं तुम से कहता हूँ, जो मुझे मनुष्यों के सामने स्वीकार करेगा, उसे मानव पुत्र भी ईश्वर के दूतों के सामने स्वीकार करेगा।

9) परन्तु जो मुझे मनुष्यों के सामने अस्वीकार करेगा, वह ईश्वर के दूतों के सामने अस्वीकार किया जायेगा।

10) “जो मानव पुत्र के विरुद्ध कुछ कहेगा, उसे क्षमा मिल जायेगी, परन्तु पवित्र आत्मा की निन्दा करने वाले को क्षमा नहीं मिलेगी।

11) “जब वे तुम्हें सभागृहों, न्यायाधीशों और शासकों के सामने खींच ले जायेंगे, तो यह चिन्ता न करो कि हम कैसे बोलेंगे और अपनी ओर से क्या कहेंगे;

12) क्योंकि उस घड़ी पवित्र आत्मा तुम्हें सिखायेगा कि तुम्हें क्या-क्या कहना चाहिए।”

मूर्ख धनी का दृष्टान्त

13) भीड़ में से किसी ने ईसा से कहा, “गुरूवर! मेरे भाई से कहिए कि वह मेरे लिए पैतृक सम्पत्ति का बँटवारा कर दें”।

14) उन्होंने उसे उत्तर दिया, “भाई! किसने मुझे तुम्हारा पंच या बँटवारा करने वाला नियुक्त किया?”

15) तब ईसा ने लोगों से कहा, “सावधान रहो और हर प्रकार के लोभ से बचे रहो; क्योंकि किसी के पास कितनी ही सम्पत्ति क्यों न हो, उस सम्पत्ति से उसके जीवन की रक्षा नहीं होती”।

16) फिर ईसा ने उन को यह दृष्टान्त सुनाया, “किसी धनवान् की ज़मीन में बहुत फ़सल हुई थी।

17) वह अपने मन में इस प्रकार विचार करता रहा, ’मैं क्या करूँ? मेरे यहाँ जगह नहीं रही, जहाँ अपनी फ़सल रख दूँ।

18) तब उसने कहा, ’मैं यह करूँगा। अपने भण्डार तोड़ कर उन से और बड़े भण्डार बनवाऊँगा, उन में अपनी सारी उपज और अपना माल इकट्ठा करूँगा

19) और अपनी आत्मा से कहूँगा-भाई! तुम्हारे पास बरसों के लिए बहुत-सा माल इकट्ठा है, इसलिए विश्राम करो, खाओ-पिओ और मौज उड़ाओ।’

20) परन्तु ईश्वर ने उस से कहा, ’मूर्ख! इसी रात तेरे प्राण तुझ से ले लिये जायेंगे और तूने जो इकट्ठा किया है, वह अब किसका ह़ोगा?’

21) यही दशा उसकी होती है जो अपने लिए तो धन एकत्र करता है, किन्तु ईश्वर की दृष्टि में धनी नहीं है।”

विधाता पर भरोसा

22) उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, “इसलिए मैं तुम लोगों से कहता हूँ, चिन्ता मत करो-न अपने जीवन-निर्वाह की, कि हम क्या खायें और न अपने शरीर की, कि हम क्या पहनें;

23) क्योंकि जीवन भोजन से और शरीर कपड़े से बढ़ कर है।

24) कौओं को देखो। वे न तो बोते हैं, और न लुनते है; उनके न तो भण्डार है, न बखार। फिर भी ईश्वर उन्हें खिलाता है। तुम पक्षियों से कहीं बढ़ कर हो।

25) चिन्ता करने से तुम में कौन अपनी आयु घड़ी भर भी बढ़ा सकता है?

26) यदि तुम इतना भी नहीं कर सकते, तो फिर दूसरी बातों की चिन्ता क्यों करते हो?

27) “फूलों को देखो। वे कैसे बढ़ते हैं! वे न तो श्रम करते हैं और न कातते हैं। फिर भी मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि सुलेमान अपने पूरे ठाट-बाट में उन में एक की भी बराबरी नहीं कर सकता था।

28) खेतों की घास आज भर है और कल चूल्हे में झोंक दी जायेगी। उसे भी यदि ईश्वर इस प्रकार सजाता है, तो अल्प-विश्वासियो! वह तुम्हें क्यों नहीं पहनायेगा?

29) इसलिए खाने-पीने की खोज में लगे रह कर चिन्ता मत करो।

30) इन सब चीज़ों की खोज में संसार के लोग लगे रहते हैं। तुम्हारा पिता जानता है कि तुम्हें इनकी ज़रूरत है।

31) इसलिए उसके राज्य की खोज में लगे रहो। ये सब चीज़ें तुम्हें यों ही मिल जायेंगी।

32) छोटे झुण्ड! डरो मत, क्योंकि तुम्हारे पिता ने तुम्हें राज्य देने की कृपा की है।

सच्चा धन

33) “अपनी सम्पत्ति बेच दो और दान कर दो। अपने लिए ऐसी थैलियाँ तैयार करो, जो कभी छीजती नहीं। स्वर्ग में एक अक्षय पूँजी जमा करो। वहाँ न तो चोर पहुँचता है और न कीड़े खाते हैं;

34) क्योंकि जहाँ तुम्हारी पूँजी है, वहीं तुम्हारा हृदय भी होगा।

चौकसी

35) “तुम्हारी कमर कसी रहे और तुम्हारे दीपक जलते रहें।

36) तुम उन लोगों के सदृश बन जाओ, जो अपने स्वामी की राह देखते रहते हैं कि वह बारात से कब लौटेगा, ताकि जब स्वामी आ कर द्वार खटखटाये, तो वे तुरन्त ही उसके लिए द्वार खोल दें।

37) धन्य हैं वे सेवक, जिन्हें स्वामी आने पर जागता हुआ पायेगा! मैं तुम से यह कहता हूँः वह अपनी कमर कसेगा, उन्हें भोजन के लिए बैठायेगा और एक-एक को खाना परोसेगा।

38) और धन्य हैं वे सेवक, जिन्हें स्वामी रात के दूसरे या तीसरे पहर आने पर उसी प्रकार जागता हुआ पायेगा!

39) यह अच्छी तरह समझ लो-यदि घर के स्वामी को मालूम होता कि चोर किस घड़ी आयेगा, तो वह अपने घर में सेंध लगने नहीं देता।

40) तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी तुम उसके आने की नहीं सोचते, उसी घड़ी मानव पुत्र आयेगा।”

ईमानदार और बेईमान कारिन्दा

41) पेत्रुस ने उन से कहा, “प्रभु! क्या आप यह दृष्टान्त हमारे लिए कहते हैं या सबों के लिए?”

42) प्रभु ने कहा, “कौन ऐसा ईमानदार और बुद्धिमान् कारिन्दा है, जिसे उसका स्वामी अपने नौकर-चाकरों पर नियुक्त करेगा ताकि वह समय पर उन्हें रसद बाँटा करे?

43) धन्य हैं वह सेवक, जिसका स्वामी आने पर उसे ऐसा करता हुआ पायेगा!

44) मैं तुम से यह कहता हूँ, वह उसे अपनी सारी सम्पत्ति पर नियुक्त करेगा।

45) परन्तु यदि वह सेवक अपने मन में कहे, ’मेरा स्वामी आने में देर करता है’ और वह दासदासियों को पीटने, खाने-पीने और नशेबाजी करने लगे,

46) तो उस सेवक का स्वामी ऐसे दिन आयेगा, जब वह उसकी प्रतीक्षा नहीं कर रहा होगा और ऐसी घड़ी जिसे वह जान नहीं पायेगा। तब स्वामी उसे कोड़े लगवायेगा और विश्वासघातियों का दण्ड देगा।

47) “अपने स्वामी की इच्छा जान कर भी जिस सेवक ने कुछ तैयार नहीं किया और न उसकी इच्छा के अनुसार काम किया, वह बहुत मार खायेगा।

48) जिसने अनजाने ही मार खाने का काम किया, वह थोड़ी मार खायेगा। जिसे बहुत दिया गया है, उस से बहुत माँगा जायेगा और जिसे बहुत सौंपा गया है, उस से अधिक माँगा जायेगा।

संघर्ष

49) “मैं पृथ्वी पर आग ले कर आया हूँ और मेरी कितनी अभिलाषा है कि यह अभी धधक उठे!

50) मुझे एक बपतिस्मा लेना है और जब तक वह नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ!

फूट का कारण

51) “क्या तुम लोग समझते हो कि मैं पृथ्वी पर शान्ति ले कर आया हूँ? मैं तुम से कहता हूँ, ऐसा नहीं है। मैं फूट डालने आया हूँ।

52) क्योंकि अब से यदि एक घर में पाँच व्यक्ति होंगे, तो उन में फूट होगी। तीन दो के विरुद्ध होंगे और दो तीन के विरुद्ध।

53) पिता अपने पुत्र के विरुद्ध और पुत्र अपने पिता के विरुद्व। माता अपनी पुत्री के विरुद्ध होगी और पुत्री अपनी माता के विरुद्ध। सास अपनी बहू के विरुद्ध होगी और बहू अपनी सास के विरुद्ध।”

समय की पहचान

54) ईसा ने लोगों से कहा, “यदि तुम पश्चिम से बादल उमड़ते देखते हो, तो तुरन्त कहते हो, ’वर्षा आ रही है‘ और ऐसा ही होता है,

55) जब दक्षिण की हवा चलती है, तो कहते हो, ’लू चलेगी’ और ऐसा ही होता है।

56 ढोंगियों! यदि तुम आकाश और पृथ्वी की सूरत पहचान सकते हो, तो इस समय के लक्षण क्यों नहीं पहचानते?

मुद्दई से समझौता

57) “तुम स्वयं क्यों नहीं विचार करते कि उचित क्या है?

58) जब तुम अपने मुद्यई के साथ कचहरी जा रहे हो, तो रास्ते में ही उस से समझौता करने की चेष्टा करो। कहीं ऐसा न हो कि वह तुम्हें न्यायकर्ता के पास खींच ले जाये और न्यायकर्ता तुम्हें प्यादे के हवाले कर दे और प्यादा तुम्हें बन्दीगृह में डाल दे।

59) मैं तुम से कहता हूँ, जब तक कौड़ी-कौड़ी न चुका दोगे, तब तक वहाँ से नहीं निकल पाओगे।”

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In the Gospel by Saint Luke Chapter 12, we can see some important things about the Lord Jesus:-

Fearlessness – Fearlessness is the hallmark of a perfect life and freedom. In this worldly life, we live in fear. Fear can also be another name for life. Only the Lord Jesus can give us the gift of true freedom. Fearlessness is not because we are capable; Rather, our relationship with God. God deals with each one individually, not to a crowd. Our relationship with God is the source of our identity, strength, boldness, freedom, and all of life.

The Parable of the Rich Fool – Wealth varies. What is considered wealth in one country or place, need not necessarily be considered wealth in another place. All that is considered wealth in the world is not considered wealth in heaven. That’s why the Lord says that we need to become rich in the eyes of God.

Do Not Worry – This teaching gives us the confidence to live. We can see this as the completion of the above education. God is our father and we are all his children. The Lord Jesus repeats the same thing over and over again, “Your Father knows you need him”. The heavenly store has been opened before us!

Watchful Slaves – The Lord’s teaching about becoming rich in the eyes of God takes us forward. Here we are told what true wealth is. The Lord says that true wealth is “an inexhaustible wealth” to be deposited in heaven. How do we know where our true wealth is? The Lord says, “Where your wealth is, your heart will also be there”. Let us examine where our heart is.

The Faithful or the Unfaithful Slave – No one knows when the end will come. That’s why the Lord tells us to be ready always. That is why we have been asked to live by keeping our death in front of our eyes. Every person has been given some responsibility. It is our duty to always fulfill them.
Jesus the Cause of Division – The Lord had come with one goal, one mission. The reason for their incarnation is also the same. The Lord says he brought fire. Here the fire and baptism point to his redemptive death. Lord Jesus is definitely called peace-of-the-King. But they say that they have come to divide. Because no one can ignore the Lord. He will either be with the Lord or against.

Interpreting the Time – Different fields require different types of knowledge. We know a lot about this world, but do not give importance to the kingdom of heaven and know a lot about it.

Settling with Your Opponent – The Lord teaches us to live in love with one another. It is better to reach a mutual settlement than to go to court for mutual differences.