लूकस अध्याय 13

सन्त लूकस का सुसमाचार – अध्याय 13

लूकस अध्याय 13 का परिचय

संत लूकस रचित सुसमाचार अध्याय 13 निम्न महत्वपूर्ण बातों को देख सकते हैं :-

पश्चात्ताप – हम स्वाभाविक रूप से दूसरों की गलतियों को जल्दी ढूँढ लेते हैं। लेकिन प्रभु कहते हैं कि सबों को पश्चात्ताप की जरुरत है। अपने पापों को स्वीकारना और ईश्वर की इच्छा अनुसार जीना अनिवार्य है।

फलहीन अंजीर का पेड़ – यह दृष्टान्त हमारे प्रती ईश्वर की दया को दर्शाता है। ईश्वर चाहते हैं कि हम फलदायी बनें। इसके लिए ईश्वर हमें अवसर देते रहते हैं। लेकिन हमें इन अवसरों को ईश्वर की कमजोरी के रूप में नहीं बल्कि हमारी मुक्ति के लिए ईश्वर की दया के रूप में देखने की जरुरत है।

दुर्बल स्त्री को स्वास्थ्यलाभ – अठारह वर्षों से शैतान के वश में रहने वाली स्त्री को प्रभु चँगा करते हैं। वह दोनों शारीरिक और आत्मिक रुप से बंधन में थी। उसको पूर्ण छुटकारा देते हैं। लेकिन सब इससे खुश नहीं थे। वे चाह रहे थे कि लोग विश्राम दिन छोड़ कर अन्य दिनों में चंगाई के लिए आएं। लेकिन प्रभु के लिए कोई नियम रोक नहीं सकता।

राई का दाना और ख़मीर का दृष्टान्त – इन दोनों दृष्टान्तों द्वारा प्रभु येसु स्वर्गराज्य के गुण को हमारे सामने रखते हैं। ईश्वर को मनुष्यों की शक्ति की जरुरत नहीं है। ईश्वर को संख्या की भी जरुरत नहीं है। इन दोनों दृष्टान्तों में देखते हैं कि आकार में राई और खमीर बहुत ही छोटा है; लेकिन अपनी आकार की तुलना में कहीं गुना ज्यादा परिणाम लाते हैं। दूसरी समानता है – दोनों अंधकार में रहकर शांतिपूर्ण तरीके से अपना कार्य करते हैं। ईश्वर का राज्य भी यही करता है।

मुक्ति की कठिनता – मुक्ति पाना आसान नहीं है। इसके लिए हमें बहुत मेहनत करना पड़ेगा। प्रभु येसु कहते हैं कि हमें सँकरे द्वार से प्रवेश करना पड़ेगा जो कि इस दुनिया की नज़र में उचित नहीं है।

हेरोद का कपट – प्रभु येसु अपने मिशन से पूर्ण रूप से परिचित थे। उनके अनुमति के बिना कोई कुछ भी नहीं कर सकता था। प्रभु अपना जीवन अर्पित कर रहे थे।

येरूसालेम को चेतावनी – जैसे हम “संत लूकस रचित सुचमाचर का परिचय” देखे हैं – येरूसालेम इस सुसमाचार में एक विशेष स्थान पाता है। प्रभु इसको बचाने बहुत कोशिश किये, लेकिन लोग ईश्वर की अधीनता स्वीकार करने से इंकार कर दिए। क्या हम से भी प्रभु यही कह रहे होंगे?

पश्चात्ताप

1) उस समय कुछ लोग ईसा को उन गलीलियों के विषय में बताने आये, जिनका रक्त पिलातुस ने उनके बलि-पशुओं के रक्त में मिला दिया था।

2) ईसा ने उन से कहा, “क्या तुम समझते हो कि ये गलीली अन्य सब गलीलियों से अधिक पापी थे, क्योंकि उन पर ही ऐसी विपत्ति पड़ी?

3) मैं तुम से कहता हूँ, ऐसा नहीं है; लेकिन यदि तुम पश्चात्ताप नहीं करोगे, तो सब-के-सब उसी तरह नष्ट हो जाओगे।

4) अथवा क्या तुम समझते हो कि सिल़ोआम की मीनार के गिरने से जो अठारह व्यक्ति दब कऱ मर गये, वे येरूसालेम के सब निवासियों से अधिक अपराधी थे?

5) मैं तुम से कहता हूँ, ऐसा नहीं है; लेकिन यदि तुम पश्चात्ताप नहीं करोगे, तो सब-के-सब उसी तरह नष्ट हो जाओगे।”

फलहीन अंजीर का पेड़

6) तब ईसा ने यह दृष्टान्त सुनाया, “किसी मनुष्य की दाखबारी में एक अंजीर का पेड़ था। वह उस में फल खोजने आया, परन्तु उसे एक भी नहीं मिला।

7) तब उसने दाखबारी के माली से कहा, ’देखो, मैं तीन वर्षों से अंजीर के इस पेड़ में फल खोजने आता हूँ, किन्तु मुझे एक भी नहीं मिलता। इसे काट डालो। यह भूमि को क्यों छेंके हुए हैं?’

8) परन्तु माली ने उत्तर दिया, ’मालिक! इस वर्ष भी इसे रहने दीजिए। मैं इसके चारों ओर खोद कर खाद दूँगा।

9) यदि यह अगले वर्ष फल दे, तो अच्छा, नहीं तो इसे काट डालिएगा’।”

दुर्बल स्त्री को स्वास्थ्यलाभ

10) ईसा विश्राम के दिन किसी सभागृह में शिक्षा दे रहे थे।

11) वहाँ एक स्त्री आयी, जो अपदूत लग जाने के कारण अठारह वर्षों से बीमार थी। वह एकदम झुक गयी थी और किसी भी तरह सीधी नहीं हो पाती थी।

12) ईसा ने उसे देख कर अपने पास बुलाया और उस से कहा, “नारी! तुम अपने रोग से मुक्त हो गयी हो”

13) और उन्होंने उस पर हाथ रख दिये। उसी क्षण वह सीधी हो गयी और ईश्वर की स्तुति करती रही।

14) सभागृह का अधिकारी चिढ़ गया, क्योंकि ईसा ने विश्राम के दिन उस स्त्री को चंगा किया था। उसने लोगों से कहा, “छः दिन हैं, जिन में काम करना उचित है। इसलिए उन्हीं दिनों चंगा होने के लिए आओ, विश्राम के दिन नहीं।”

15) परन्तु प्रभु ने उसे उत्तर दिया, “ढोंगियो! क्या तुम में से हर एक विश्राम के दिन अपना बैल या गधा थान से खोल कर पानी पिलाने नहीं ले जाता?

16) शैतान ने इस स्त्री, इब्राहीम की इस बेटी को इन अठारह वर्षों से बाँध रखा था, तो क्या इसे विश्राम के दिन उस बन्धन से छुड़ाना उचित नहीं था?”

17) ईसा के इन शब्दों से उनके सब विरोधी लज्जित हो गये; लेकिन सारी जनता उनके चमत्कार देख कर आनन्दित होती थी।

राई का दाना

18) ईसा ने कहा, “ईश्वर का राज्य किसके सदृश है? मैं इसकी तुलना किस से करूँ?

19) वह उस राई के दाने के सदृश है, जिसे ले कर किसी मनुष्य ने अपनी बारी में बोया। वह बढ़ते-बढ़ते पेड़ हो गया और आकाश के पंछी उसकी डालियों में बसेरा करने आये।”

ख़मीर का दृष्टान्त

20) उन्होंने फिर कहा, “मैं ईश्वर के राज्य की तुलना किस से करूँ?

21) वह उस ख़मीर के सदृश है, जिसे ले कर किसी स्त्री ने तीन पंसेरी आटे में मिलाया और सारा आटा ख़मीर हो गया।”

मुक्ति की कठिनता

22) ईसा नगर-नगर, गाँव-गाँव, उपदेश देते हुए येरूसालेम के मार्ग पर आगे बढ़ रहे थे।

23) किसी ने उन से पूछा, “प्रभु! क्या थोड़े ही लोग मुक्ति पाते हैं?’ इस पर ईसा ने उन से कहा,

24) “सँकरे द्वार से प्रवेश करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करो, क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ – प्रयत्न करने पर भी बहुत-से लोग प्रवेश नहीं कर पायेंगे।

25) जब घर का स्वामी उठ कर द्वार बन्द कर चुका होगा और तुम बाहर रह कर द्वार खटखटाने और कहने लगोगे, ’प्रभु! हमारे लिए खोल दीजिए’, तो वह तुम्हें उत्तर देगा, ’मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ के हो’।

26) तब तुम कहने लगोगे, ’हमने आपके सामने खाया-पीया और आपने हमारे बाज़ारों में उपदेश दिया’।

27) परन्तु वह तुम से कहेगा, ’मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ के हो। कुकर्मियो! तुम सब मुझ से दूर हटो।’

28) जब तुम इब्राहीम, इसहाक, याकूब और सभी नबियों को ईश्वर के राज्य में देखोगे, परन्तु अपने को बहिष्कृत पाओगे, तो तुम रोओगे और दाँत पीसते रहोगे।

29) पूर्व तथा पश्चिम से और उत्तर तथा दक्षिण से लोग आयेंगे और ईश्वर के राज्य में भोज में सम्मिलित होंगे।

30) देखो, कुछ जो पिछले हैं, अगले हो जायेंगे और कुछ जो अगले हैं, पिछले हो जायेंगे।”

हेरोद का कपट

31) उसी समय कुछ फ़रीसियों ने आ कर उन से कहा, “विदा लीजिए और यहाँ से चले जाइए, क्योंकि हेरोद आप को मार डालना चाहता है”।

32) ईसा ने उन से कहा, “जा कर उस लोमड़ी से कहो-मैं आज और कल नरकदूतों को निकालता और रोगियों को चंगा करता हूँ और तीसरे दिन मेरा कार्य समापन तक पहुँचा दिया जायेगा।

33) आज, कल और परसों मुझे यात्रा करनी है, क्योंकि यह हो नहीं सकता कि कोई नबी येरूसालेम के बाहर मरे।

येरूसालेम को चेतावनी

34) “येरूसालेम! येरूसालेम! तू नबियों की हत्या करता और अपने पास भेजे हुए लोगों को पत्थरों से मार देता है। मैंने कितनी बार चाहा कि तेरी सन्तान को एकत्र कर लूँ, जैसे मुर्गी अपने चूज़ों को अपने डैनों के नीचे एकत्र कर लेती है, परन्तु तुम लोगों ने इनकार कर दिया।

35) देखो, तुम्हारा घर उजाड़ छोड़ दिया जायेगा। मैं तुम से कहता हूँ, तुम मुझे तब तक नहीं देखोगे, जब तक तुम यह न कहोगे, ’धन्य हैं वह, जो प्रभु के नाम पर आते हैं’!“

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