संत लूकस रचित सुसमाचार का परिचय

Introduction to the Gospel According to Luke

संत लूकस रचित सुसमाचार हमें ईश्वर के उस रूप को बतलाता है जो हमसे अत्यदिक प्रेम, दया और क्षमा करने वाले हैं। संत लूकस रचित सुसमाचार का परिचय (INTRODUCTION TO LUKE GOSPEL) इस विशेष सुसमाचार को अच्छे और सही ढंग से समझने में जरूर मदद करेगा।
INTRODUCTION TO LUKE GOSPEL नाम के इस वीडियो में निम्न विषयों पर गहरा अध्ययन किया गया है :-
संत लूकस रचित सुसमाचार के लेखक – संत लूकस
पाठक एवं उद्देश्य (किसके लिए और क्यों लिखा गया)
रचनाकाल एवं स्थान (कब और कहाँ लिखा गया)
स्रोत (पूरी जानकारी कहाँ से प्राप्त किये)
संरचना (कैसे लिखा गया है)
पूरे पुस्तक को 4 भागों में बाँट सकते हैं। विशेष रूप से 3

  1. प्रभु का जन्म और उनकी बाल्यावस्ता (1:1-4:13)
  2. सलिलिया के आसपास घटी घटनाएँ (4:14-9:50)
  3. सामरिया और गलीली (9:51-19:50)
  4. येरूसालेम में प्रभु येसु का कार्य (19:28-24:53)
    28 दृष्टांतों में से इक्कीस 10:30-19:27 में पाया जाता है।
    20 चमत्कारों में से पांच 9:51-19:27 में पाया गया है।

10 विशेषताएँ :-

  1. ईश्वर की योजना में यहुदियों और गैर-यहूदियों की पहचान (2:30, 32, 3:6)
  2. विभिन्न महत्त्वपूर्ण अवसरों पर जोर (3:21)
  3. सुसमाचार की घोषणा में आनंद और उल्लास (1:14)
  4. महिलाओं की भूमिका पर विशेष ध्यान (8:1-3)
  5. गरीबों पर विशेष ध्यान (12:33)
  6. पापियों के प्रति हमदर्दी
  7. 25 बार “मानव पुत्र” का प्रयोग
  8. पवित्र आत्मा पर बल (4:1)
  9. सबसे ज्यादा दृष्टान्त (28)
  10. ईश्वर की स्तुति में विशेष ध्यान

येरूसालेम केंद्रित

येरुसालेम यहूदी राष्ट्र की राजधानी है । लूकस के सुसमाचार में इसका विशेष ईश-शास्रीय महत्व है :-

लूकस द्वारा मसीही युग का प्रारंभ येरुसालेम में हुआ जब ज़करियस को योहन बपतिस्ता के जन्म का संदेश मिला। (लूकस 1:5-25)
लूकस द्वारा यह बताया गया है कि हमारे प्रभु को येरुसालेम के मन्दिर में अर्पित किया गया था। (लूकस 2:2-38) और वे बारह वर्ष की अवस्था में येरुसालेम आये थे। (लूकस 2:41-50)

येसु् येरुसालेम जाने का महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं। (लूकस 9:51) और निरंतर इसके बारे में सचेत रहते हैं। (लूकस 9:53; 73:22; 17:11, 19:11) इस यात्रा के दौरान वे येरुसालेम की कठोरता पर आँसू बहाते हैं। (लूकस 13:1-5; 19:47-44) और अपने दुःखभोग की भविष्यवारणी भी करते हैं। (18:31-34)

येरुसालेम में प्रवेश के साथ ही प्रभु येसु का दुःखभोग प्रारम्भ हो जाता है। (लूकस 19:28-40)
येसु येरुसालेम के सर्वनाश की भविष्यवाणी करते हैं। (लूकस 21:20-24; 23; 27-31)
अपने पुनरुत्यान के बाद येसु एम्माउस के शिष्यों को पुनः येरुसालेम भेजते हैं। (लूकस 24:13-35)
वे चाहते हैं कि येरुसालेम से ही सुसमाचार का प्रचार प्रारंभ हो। (लूकस 24:27; 24:50-53)

समस्त मानवजाति की मुक्ति

  • विश्व इतहास से जोड़ना (लूकस 2:23-38)
  • रोमी साम्राज्य में इसका कथन (लूकस 2:1-5)
  • जब कैसर तिबेरियुस के शासनकाल के पन्द्रहवें वर्ष में पोंतियुस पिलातुस यहूदिया का राज्यपाल था; हेरोद गलीलिया का राजा, उसका भाई फि़लिप इतूरैया और त्रखोनितिस का राजा और लुसानियस अबिलेने का राजा था; (लूकस 3:1)
  • विश्ववव्यापी कलीसिया (लूकस
  • समस्त मानव जाती के लिए (लूकस 2:14)
  • ख्रीस्त सभी राष्ट्रों की मुक्ति एवं ज्योति (लूकस 2:30; 3:6; 24:47)
  • गैर-यहूदियों के लिए येसु की दयालुता (लूकस 9:51-56)
  • दस कोढ़ी चंगे किये गए और एक ही धन्यवाद देने आया जो “समारी” था। (लूकस 17:11-19)
  • पडोसी प्रेम के लिए “समारी” का उदहारण। (लूकस 10:29-37)

संत लूकस के सुसमाचार के विशिष्ट पाठ्यांश

संत लूकस के सुसमाचार संस्करण में हमें हमारे प्रभ् द्वारा दिये गये कुछ प्रसिद्ध एवं हृदयस्पर्शी दृष्टांत’ मिलते हैं।

मुर्ख धनी का दृष्टांत – लूकस 12:13-21
अंजीर के पेड़ का दृष्टांत – लूकस 13:6-9
मीनार बनाने वाले का दृष्टांत – लूकस 14:28-30
खोये हुए सिक्के का दृष्टांत – लूकस 15:1-12
अमीर और लाज़रूस का दृष्टांत – लूकस 17:7-10
अयोग्य सेवक का दृष्टात – लूकस 18:1-8
फ़रीसी और नाकेदार का दृष्टांत – लूकस 18:9-14

महिलाओं के लिए विशेष स्थान

  • परम-धन्य ‘कुँवारी मरियम’ (लूकस 1:26-56; 2:5-8, 34, 51; 11:27-28)
  • एलीजबेथ के विषय में बड़े उच्च सम्मान एवं श्रद्धा के साथ कहा गया है। (लूकस 1:5-6, 13, 26, 39-45)
  • उसी तरह नबिया अन्ना के विषय (लूकस 2:36-38) में भी।
  • नाईम की विधवा’ के प्रति येसु का हदय करुणा से भर जाता है। (लूकस 7:11-17)
  • प्रभु येसु पापिनी स्त्री का मन-परिवर्तन करते एवं उसे धीरज बँधाते हैं । (लूकस 7:36-50)
  • कुछ धार्मिक स्त्रियाँ – मरियम मग्दलेना, जोअन्ना, सुसन्ना आदि येसु को उनकी धर्मसेवा में सहायता करती हैं। (लूकस 8:1-3)
  • प्रभु येसु, मरियम और मारथा के घर में शिक्षा देते हैं। (लूकस 10:38-42)
  • प्रभु येसु, अपदूत से ग्रस्त एक दुर्बल और बिल्कुल झुक गयी स्त्री को चंगा करते (लूकस 13:38-42)
  • कलवारी की ओर जाते समय प्रभु येसु ‘येरुसालैम की रोती हुई स्त्रियाँ’ से बातें करते हैं। (लूकस 23:27-31)

प्रभु येसु – प्रेमी मुक्तिदाता

प्रभु येसु के जीवन की कुछ विशेष घटनाओं का उल्लेख करने के लिए हम लूकस के आभारी हैं, जिन्होंने एक प्रेमी मुक्तिदातेा के रूप में उनका चरित्र-चित्रण किया है।

पापिनी स्त्री का मन परिवर्तन (लूकस 7:36-56)
जकेयुस का मन-परिवर्तन (लूकस 19:1-10)
येरुसालेम पर विलाप (लूकस 19:41-44; 13:34-35)
अपने वधिकों के लिए प्रभु येसु की प्रार्थना (लूकस 23:34)
पश्चात्तापी डाकू से येसु की प्रतिज्ञा (लूकस 23:39-43)
एम्माउस जाने वाले शिष्यों से प्रभु येसु का वार्तालाप (लूकस 24:13-35)

अत्यंत ख़ुशी का समाचार

एक पापी के मन परिवर्तन पर ईश्वर का आनंद (लूकस 15:7)
पापी का मन परिवर्तन ईश्वर के लिए एक पर्व है (लूकस 15:20-23)

ख्रीस्तीय आनंद और प्रसन्नता

आप आनन्दित और उल्लसित हो उठेंगे और उसके जन्म पर बहुत-से लोग आनन्द मनायेंगे। (लूकस 1:14)
स्वर्गदूत ने उन से कहा, “डरिए नहीं। देखिए, मैं आप को सभी लोगों के लिए बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूँ। (लूकस 2:10)
बहत्तर शिष्य सानन्द लौटे और बोले, “प्रभु! आपके नाम के कारण अपदूत भी हमारे अधीन होते हैं”। (लूकस 10:17)
सारी जनता उनके चमत्कार देख कर आनन्दित होती थी। (लूकस 13:17)

हमारा आनंद ईश्वर के प्रति हमारे धन्यवाद एवं आभार को प्रकट करता है
जब वे जैतून पहाड़ की ढाल पर पहुँचे, तो पूरा शिष्य-समुदाय आनंदविभोर हो कर आँखों देखे सब चमत्कारों के लिए ऊँचे स्वर से इस प्रकार ईश्वर की स्तुति करने लगा (लूकस 19:37)
वे उन्हें दण्डवत् कर बड़े आनन्द के साथ येरूसालेम लौटे और ईश्वर की स्तुति करते हुए सारा समय मन्दिर में बिताते थे। (लूकस 24:52-53)

संत लूकस रचित सुसमाचार में स्वप्रेरित महिमा एवं आनंद के गीत

मरियम का भजन (लूकस 1:46-57)
जकरियस का भजन (लूकस 1:68-79)
स्वर्गदूतों का महिमा गान (लूकस 2:14)
सिमेयोन की ईश-स्तुति (लूकस 2:29)

ऐसे प्रेम के प्रति हमारी प्रतिक्रिया केवल आनंद और आभार ही हो सकती है।

इस विशेष सुसमाचार को अच्छे से समझ कर पढ़ने पूरे वीडियो देखिये।