मारकुस रचित सुसमाचार का परिचय

Introduction to the Gospel of Mark in Hindi

पवित्र बाइबिल पढ़ कर ही हम प्रभु येसु को जानने सकते हैं। पवित्र बाइबिल अन्य पुस्तकों के समान नहीं हैं; यह तो ईश्वर का वचन है। इसका लेखक दोनों पवित्र आत्मा और मनुष्य हैं।

पवित्र बाइबिल का हर पुस्तक प्रभु येसु के बारे में हमें सिखा सकता है, विशेष रूप से चारों सुसमाचार।

सभी पुस्तकें उस समय के लोगों को ध्यान में रख कर उन्ही के लिए लिखे गए थे। इसलिए लगभग दो हज़ार साल बाद आज जब हम पढ़ते हैं, हमें बहुत कुछ समझ में नहीं आता है।

इसलिए उस समय की पृष्ठभूमि को जानना भी आवश्यक हो जाता है।

संत मारकुस रचित सुसमाचार का परिचय जानना बहुत जरुरी है।

संत मारकुस रचित सुसमाचार सबसे पहले लिखा गया सुसमाचार है। इसका लेखक, संत योहन मारकुस, प्रेरितों में से नहीं थे। वे पेत्रुस और पौलुस के शिष्य थे।

संत मारकुस रचित सुसमाचार को पढ़ने से ऐसा लगता है मानो कोई प्रत्यक्षदर्शी हमें घटनाओं का वर्णन कर रहा हो।

विद्वानों का कहना है कि संत पेत्रुस ही अपने शिष्य योहन मारकुस को इनका वर्णन किये होंगे।

संत मारकुस रचित सुसमाचार का चिन्ह शेर है; क्योंकि यह पुस्तक योहन बपतिस्ता के कार्यों के साथ प्रारम्भ किया गया है।

केवल 16 अध्याय वाला सबसे छोटे इस सुसमाचार में प्रभु के बाल्यावस्था का वर्णन नहीं किया गया है।

पूरा सुसमाचार कोई प्रत्यक्षदर्शी के वर्णन के रूप में देखा जा सकता है; क्योंकि इस में “तुरंत” शब्द का लगभग 40 बार प्रयोग किया गया है।

संत मारकुस रचित सुसमाचार का परिचय जानना बहुत जरुरी है।

हर पुस्तक का एक उद्देश्य है। वैसे ही संत मारकुस रचित सुसमाचार का उद्देश्य “ईसा मसीह हो ईश्वर के पुत्र” के रूप में स्थापित करना है। संत मारकुस 1:1 में पढ़ते हैं, “ईश्वर के पुत्र ईसा मसीह के सुसमाचार का प्रारम्भ।”

पाठक – संत मारकुस गैर-यहूदियों के लिए इस पुस्तक को लिखे हैं।

संत मारकुस रचित सुसमाचार को 6 भागों में बाँट कर बेहतर समझ सकते हैं। जैसे :-

परिचय 1:1-13

  1. ईसा का अधिकार 1:14-3:6
  2. लोगों के प्रतिक्रिया 3:7-6:6a
  3. शिष्यों की गलतफेमी 6:6b-8:21
  4. चुने हुए मसीह का मिशन और शिष्यों की अज्ञानता 8:22-10:52
  5. प्रभु के अंतिम कार्य 11:1-13:37
  6. प्रभु के दुःखभोग और मृत्यु 14:1-15:47

समापन – 16:1-18 पुनरुत्थान और दर्शन

संत मारकुस रचित सुसमाचार को बेहत्तर समझने पूरे वीडियो को देखिये।

We can know the Lord Jesus only by reading the Holy Bible. The Holy Bible is not the same as other books; this is theWord of God. Its author are Peter and Paul.
Reading the Gospel of Saint Mark, it is as if an eyewitness is narrating us the events.
Scholars say that Saint Peter must have described them to his disciple, John Mark.
The symbol of the Gospel of Saint Mark is the lion; because this book begins with the works of St. John the Baptist.
The shortest Gospel with only 16 chapters does not describe the Lord’s childhood.
The entire Gospel can be seen as an eyewitness account; because in this the word “immediately” is used about 40 times.
It is very important to know the “Introduction of the Gospel” composed by Saint Mark.
Every book has a purpose. Similarly, the purpose of the Gospel composed by Saint Mark is to establish “Jesus Christ as the Son of God”. Saint Mark reads in 1:1, “The beginning of the gospel of Jesus Christ, the Son of God.”
Readers – Saint Mark wrote this book for the Gentiles.

The Gospel according to St. Mark can better be understood by dividing it into 6 parts.
Introduction 1:1-13
The authority of Jesus 1:14-3:6
People’s response 3:7-6:6a
Disciples Misunderstanding 6:6b-8:21
The Mission of the Chosen Christ and the Ignorance of the Disciples 8:22-10:52
The Lord’s Last Acts 11:1-13:37
Lord’s Suffering and Death 14:1-15:47
Conclusion : 16:1-18 Resurrection and Vision