सन्त मत्ती का सुसमाचार – अध्याय 28
सन्त मत्ती रचित सुसमाचार का समापन अध्याय 28 के साथ होता है। जैसे हम जानते हैं, संत मत्ती रचित सुसमाचार सबसे लम्भा सुसमाचार है। अध्याय 28 में प्रभु येसु का पुनरुत्थान और उनका शिष्यों को दर्शन के बारे में वर्णन है। संत मत्ती रचित सुसमाचार अध्याय 26 की घटनाएँ इस प्रकार हैं :- स्वर्गदूत का सन्देश - स्वर्गदूत प्रभु के पुनरुत्थान का सन्देश महिलाओं को देते हैं। इतिहास में पहली और अंतिम घटना है यह। स्त्रियों को दर्शन - केवल प्रभु के पुनरुत्थान का सन्देश सुन कर आनंदित होने वाली महिलाओं को प्रभु दर्शन दे कर उनके आनंद को पूर्ण करते हैं। पहरेदारों को रिश्वत - शैतान प्रभु को अपने वश में तो नहीं कर सका, इसलिए प्रभु के पुनरुत्थान के सुसमाचार को दबाने की कोशिश करता है। शिष्यों का प्रेषण - पुनर्जीवित प्रभु अपने मिशन कार्य को जारी रखने की जिम्मेदारी अपने शिष्यों को देते हैं। उनके साथ सदा रहने का वादा करते हुए प्रभु कहते हैं, "मैं संसार के अन्त तक सदा तुम्हारे साथ हूँ।"
स्वर्गदूत का सन्देश
1) विश्राम-दिवस के बाद, सप्ताह के प्रथम दिन, पौ फटते ही, मरियम मगदलेना और दूसरी मरियम कब्र देखने आयीं।
2) एकाएक भारी भुकम्प हुआ। प्रभु का एक दूत स्वर्ग से उतरा, कब्र के पास आया और पत्थर अलग लुढ़का कर उस पर बैठ गया।
3) उसका मुखमण्डल बिजली की तरह चमक रहा था और उसके वस्त्र हिम के सामान उज्ज्वल थे।
4) दूत को देख कर पहरेदार थर-थर काँपने लगे और मृतक -जैसे हो गये।
5) स्वर्गदूत ने स्त्रियों से कहा, “डरिए नहीं। मैं जानता हूँ कि आप लोग ईसा को ढूँढ़ रही हैं, जो क्रूस पर चढ़ाये गये थे।
6) वे यहाँ नहीं हैं। वे जी उठे हैं, जैसा कि उन्होंने कहा था। आइए और वह जगह देख लीजिए, जहाँ वे रखे गये थे।
7) अब सीधे उनके शिष्यों के पास जा कर कहिए, ’वे मृतकों में से जी उठे हैं। वह आप लोगों से पहले गलीलिया जायेंगे, वहाँ आप लोग उनके दर्शन करेंगे’। यही आप लोगों के लिए मेरा सन्देश है।”
8) स्त्रियाँ शीघ्र ही कब्र के पास से चली गयीं और विस्मय तथा आनन्द के साथ उनके शिष्यों को यह समाचार सुनाने दौड़ीं।
स्त्रियों को दर्शन
9) ईसा एकाएक मार्ग में स्त्रियों के सामने आ कर खड़े हो गये और उन्हें नमस्कार किया। वे आगे बढ़ आयीं और उन्हें दण्डवत् कर उनके चरणों से लिपट़ गयीं।
10) ईसा ने उनसे कहा, “डरो नहीं। जाओ और मेरे भाइयों को यह सन्देश दो कि वे गलीलिया जायें। वहाँ वे मेरे दर्शन करेंगे।”
पहरेदारों को रिश्वत
11) स्त्रियाँ जा ही रही थीं कि कुछ पहरेदार नगर आये। उन्होंने महायाजकों को सारा हाल कह सुनाया।
12) महायाजकों ने नेताओं से मिल कर परामर्श किया और सैनिकों को एक मोटी रकम दे कर
13) इस प्रकार समझाया, “तम लोग यही कहो कि रात को जब हम लोग सोये हुये थे, तो ईसा के शिष्य आये और उसे चुरा ले गये।
14) यदि यह बात राज्यपाल के कान में पड़ गयी, तो हम उन्हें समझा कर तुम लोगों को बचा लेंगे।”
15) पहरेदारों ने रुपया ले लिया और वैसा ही किया, जैसा उन्हें सिखाया गया था। यही कहानी फैल गयी और अब तक यहूदियों में प्रचलित है।
शिष्यों का प्रेषण
16) तब ग्यारह शिष्य गलीलिया की उस पहाड़ी के पास गये , जहाँ ईसा ने उन्हें बुलाया था।
17) उन्होंने ईसा को देख कर दण्डवत् किया, किन्तु किसी-किसी को सन्देह भी हुआ।
18) तब ईसा ने उनके पास आ कर कहा, “मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है।
19) इसलिए तुम लोग जा कर सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ और उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो।
20) मैंने तुम्हें जो-जो आदेश दिये हैं, तुम-लोग उनका पालन करना उन्हें सिखलाओ और याद रखो- मैं संसार के अन्त तक सदा तुम्हारे साथ हूँ।”
The Content is used with permission from www.jayesu.com