पहली सदी में कलीसिया में मरियम भक्ति

The History of Devotion to Mary in Hindi

मरियम-भक्ति प्रारंभिक कलीसिया का विश्वास का अभिन्न अंग रहा है और उसके बाद शुरू नहीं हुई है। जरूर मरियम-भक्ति का विस्तार और गहराई होता गया है जैसे अन्य ख्रीस्तीय रहस्यों का हुआ है।

माता मरियम ईश्वर की माँ हैं। प्रभु येसु क्रूस पर मरते समय अपनी माँ को हर ख्रीस्तीय की माँ के रूप में दे दिया। उनकी मृत्यु के पहले माँ मरियम प्रभु येसु की अंतिम वरदान हैं।

प्रभु येसु के भाई-बहन बनने में माँ मरियम हमारी सहायता करती हैं। इसके बिना मुक्ति पाना मुश्किल है। इसलिए हमें उनके भक्त बनने की जरूरत है।

“जो ईश्-माता मरियम का भक्त है, वह कभी खो नहीं सकता।”

अन्ताकिया के संत इग्नेशियस

“He who is devout to the Mother of God will certainly never be lost.”

St. Ignatius of Antioch

अन्ताकिया के संत इग्नेशियस प्रेरितों के शिष्य थे। वे 108 ई. में रोम में प्रभु येसु के लिए शहीद हुए। अन्ताकिया से रोम की यात्रा में वे 7 पत्र लिखे जो पवित्र यूखरिस्त, कलीसिया, संत पिता, धर्माध्यक्ष, पुरोहित, एवं माता मरियम के बारे हमें शिक्षा देती हैं और प्रारंभिक और प्रेरितिक विश्वास और शिक्षा की जानकारी भी हमें देती हैं।

माँ मरियम के बारे में उनके लेख बहुत ही महत्त्वपूर्ण शिक्षा हमें देते हैं। वे हमें प्रारंभिक कलीसिया में ही व्याप्त मरियम-भक्ति की जानकारी देते हैं।

यह बात स्पष्ट है कि मरियम-भक्ति प्रारंभिक कलीसिया का विश्वास का अभिन्न अंग रहा है और उसके बाद शुरू नहीं हुई है। जरूर मरियम-भक्ति का विस्तार और गहराई होता गया है जैसे अन्य ख्रीस्तीय रहस्यों का हुआ है।

स्वर्गराज्य को हमें सरकारी दफ्तर के रूप में नहीं बल्कि एक परिवार के रूप में, ईश्वरीय परिवार के रूप में समझने की जरुरत है जैसे पवित्र बाइबिल में हम पढ़ते हैं।

मरियम-भक्ति को इसी सन्दर्भ में हमें देखने की जरुरत है।

तब हम महान संत, अन्ताकिया के संत इग्नेशियस के कथन को समझ पाएंगे जो कहता है, “जो ईश्-माता मरियम का भक्त है, वह कभी खो नहीं सकता।”

ईश्वरीय राज्य में प्रवेश पाने का सरल और निश्चित माध्यम ईश्वर की माँ और हमारी माँ मरियम हैं।

इन बातों को और बेहतर समझने इन पाठों को ध्यान से पढ़िए :-

प्रभु के जन्म का सन्देश

30) तब स्वर्गदूत ने उस से कहा, "मरियम! डरिए नहीं। आप को ईश्वर की कृपा प्राप्त है।

31) देखिए, आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेंगी और उनका नाम ईसा रखेंगी।

32) वे महान् होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु-ईश्वर उन्हें उनके पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा,

33) वे याकूब के घराने पर सदा-सर्वदा राज्य करेंगे और उनके राज्य का अन्त नहीं होगा।"

34) पर मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, "यह कैसे हो सकता है? मेरा तो पुरुष से संसर्ग नहीं है।"

35) स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, "पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा और सर्वोच्च प्रभु की शक्ति की छाया आप पर पड़ेगी। इसलिए जो आप से उत्पन्न होंगे, वे पवित्र होंगे और ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।

36) देखिए, बुढ़ापे में आपकी कुटुम्बिनी एलीज़बेथ के भी पुत्र होने वाला है। अब उसका, जो बाँझ कहलाती थी, छठा महीना हो रहा है;

37) क्योंकि ईश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।"

38) मरियम ने कहा, "देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो जाये।" और स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।

सन्त लूकस 1:30-38
मरियम-एलीज़बेथ का मिलन

39) उन दिनों मरियम पहाड़ी प्रदेश में यूदा के एक नगर के लिए शीघ्रता से चल पड़ी।
40) उसने ज़करियस के घर में प्रवेश कर एलीज़बेथ का अभिवादन किया।

41) ज्यों ही एलीज़बेथ ने मरियम का अभिवादन सुना, बच्चा उसके गर्भ में उछल पड़ा और एलीज़बेथ पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गयी।

42) वह ऊँचे स्वर से बोली उठी, "आप नारियों में धन्य हैं और धन्य है आपके गर्भ का फल!

43) मुझे यह सौभाग्य कैसे प्राप्त हुआ कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आयीं?

44) क्योंकि देखिए, ज्यों ही आपका प्रणाम मेरे कानों में पड़ा, बच्चा मेरे गर्भ में आनन्द के मारे उछल पड़ा।

45) और धन्य हैं आप, जिन्होंने यह विश्वास किया कि प्रभु ने आप से जो कहा, वह पूरा हो जायेगा!"

सन्त लूकस 1:30-39-45

इस रहस्य को ठीक से समझने पूरे वीडियो को देखिये।